Book Title: Hindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Author(s): Shitikanth Mishr
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 643
________________ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास कृतियाँ अत्यधिक लोकप्रिय हैं। ये रचनायें पौराणिक, ऐतिहासिक और काल्पनिक आख्यानों पर आधारित हैं। लोकवार्तामूलक कथाकहानियों पर आधारित काव्य रचनाओं की संख्या भी पर्याप्त है जैसे नलदमयन्ती, विक्रमादित्य, वैताल आदि से सम्बद्ध काव्यकृतियों में पर्याप्त सरस, काव्यात्मक स्थल उपलब्ध हैं इनके अलावा शलाकापुरुषों की जीवनियाँ, पंचकल्याणक, स्तुति स्तोत्र, देववंदन-स्तवन, गुरु, सरस्वती की स्तुति, पूजासंग्रह आदि, परन्तु गुर्वावली, पट्टावली जैसी अनेक शुष्क रचनायें भी कम नहीं हैं जिनमें छन्द या पद्य को छोड़कर अन्य कोई साहित्यिक लक्षण नहीं मिलता, किन्तु उनका जैन धर्म के इतिहास की दृष्टि से महत्व है। इनके साथ ही अनेक भाव प्रधान गीत, पद, सुललित सुभाषित आदि भी प्रचुर मात्रा में लिखे गये हैं जिन्हें पढ़कर कोई सहृदय रस विभोर हो सकता है। ये विविध विषयक रचनायें शताधिक काव्यरूपों-प्रबन्ध, चरित्र, रास, चौपाई, चौढालिया बेलि, विवाहलो, मंगल, सलोक, पद, बीसी, चौबीसी बावनी, शतक, बारहमासा, फाग आदि में लिखी गई हैं जिन पर प्रथम खण्ड में संक्षिप्त प्रकाश डाला जा चुका है अतः उन्हें दुहराने की आवश्यकता नहीं है। कहना इतना ही है कि १७वीं शताब्दी के कवियों ने भी उन काव्य रूपों का बड़ी कुशलता पूर्वक अपनी रचनाओं में उपयोग किया है। १७वीं शताब्दी में भी जैन साहित्य लेखन की परम्पराओं का पूर्णरूप से पालन होता रहा। इनमें ग्रन्थ लेखन और प्रतिलिपि कराने की परम्परा उल्लेखनीय है। इससे लिपिकारों की आजीविका के साथ ही विभिन्न साहित्य-भण्डारों और संग्रहालयों की भी समृद्धि होती रही। इससे अनुसंधित्सुओं विशेषतया पाठ विज्ञान के शोधाथियों को काफी सुभीता हुआ। इन कवियों ने अपनी रचनाओं के प्रारम्भ या अन्त में अपनी गुरुपरंपरा, रचनाकाल, स्थान, तत्कालीन शासक आदि के साथ सामाजिक जीवनचर्या, धर्म, परम्परा, रीतिनीति आदि पर भी पर्याप्त प्रकाश डाला है, उदाहरणार्थ प्रसिद्ध कवि समयसुन्दर की रचना 'सत्यासीया दुष्काल वर्णन छत्तीसी' को देखा जा सकता है । परम्परित कथाओं और काव्यरूढ़ियों का पालन करते हुए भी इन लेखकों ने यथा शक्ति अपनी मौलिक क्षमता का परिचय दिया है और अपने उद्देश्य की मौलिकता के आधार पर एक ही पात्र या कथानक को अलग-अलग कृतियों में नवीन रूप से प्रस्तुत किया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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