Book Title: Hindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1 Author(s): Shitikanth Mishr Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi View full book textPage 5
________________ ( ४ ) हिन्दी भाषा भाषियों के लिए सुग्राह्य नहीं हो पाये क्योंकि वे गुजराती भाषा और गुजराती लिपि में प्रकाशित हैं । श्री नाहटा जी का ग्रन्थ लघुकाय होने के कारण सभी मरु-गुर्जर कवियों और उनकी रचनाओं को स्पर्श नहीं कर पाया है । विद्याश्रम ने पूर्व में उनसे हिन्दी जैन साहित्य के इतिहास के राजस्थानी खण्ड को लिखने का अनुरोध भी किया था, किन्तु के उसे पूरा न कर सके और उन्होंने राजस्थानी जैन कवि नामक अपने लघु ग्रन्थ को इस खण्ड के लेखन में आधार बनाने के लिये हमें प्रेषित किया, अतः अन्त में निर्णय किया गया कि श्री देसाई और श्री नाहटा जी के ग्रन्थों को आधार बनाते हुए हिन्दी जैन साहित्य के इतिहास के प्रथम खण्ड के रूप में मरु-गुर्जर जैन साहित्य का इतिहास लिखवाया जाये । यद्यपि हमने इस कार्य के सन्दर्भ में कुछ जैन विद्वानों से भी चर्चा की थी, किन्तु हमें उत्साहजनक सहयोग नहीं मिल पाया। अन्त में मैंने संस्थान के निकट निवास कर रहे हिन्दी के वरिष्ठ प्राध्यापक डॉ० शितिकण्ठ मिश्र से निवेदन किया । पहले तो उन्होंने भी गुजराती भाषा का ज्ञान न होने तथा जैन परम्परा से परिचित न होने के कारण इस कार्य को करने में संकोच किया, परन्तु हमारे विशेष आग्रह पर इस दायित्वपूर्ण कार्य को पूरा करने का वचन दिया और आज हमें यह कहते हुए प्रसन्नता होती है कि उन्होंने अल्पावधि में ही इस विशाल कार्य को पूर्ण भी कर दिया। इसके लिये. हम निश्चय ही डॉ० शितिकण्ठ मिश्र के आभारी हैं । इस खण्ड में हमने मरु-गुर्जर या प्राचीन हिन्दी के आदिकाल से लेकर १६वीं शती के अन्त तक के कवियों और उनकी रचनाओं का संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत किया है । वस्तुतः इस युग के जैन कवि और उनकी रचनायें इतनी अधिक हैं कि उन सबका सम्पूर्ण और समीक्षात्मक विवरण दे पाना ऐसे दो-चार ग्रन्थों में भी सम्भव नहीं है । दूसरी कठिनाई यह भी है कि अभी तक सम्पूर्ण जैन भण्डारों का सर्वेक्षण भी नहीं हो पाया है अतः सम्भव है कि इस युग के अनेक कवि और उनकी रचनाओं के उल्लेख इसमें छूट गये हों । यदि विद्वानों से इस सम्बन्ध में हमें सूचना मिलेगी तो हम अगले संस्करण में उसे जोड़ देंगे । यह कहने में हमें तनिक भी संकोच नहीं कि इस ग्रन्थ की अधिकांश सामग्री श्री देसाई और श्री नाहटा के ग्रन्थों से ली गयी है, किन्तु इसके साथ ही हमें अन्य स्रोतों से जो कुछ भी मिल सका है, उसे भी विद्वान् लेखक ने इसमें समाहित करने का प्रयत्न किया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 ... 690