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प्रभु-महावीर किन्तु भगवान कुछ भी न बोले, न कुछ सङ्केत ही किया। कुछ उत्तर न पाकर, गोशाला स्वयं ही उनका चेला बन गया, यानी उसने अपने आपको श्री वर्धमान का चेला घोषित कर दिया।
चौमासा पूरा होगया और श्री वर्द्धमान ने विहार कर दिया। उनके साथ ही साथ गोशाला भी चला । गुरु कितने शान्त सहिष्णु और मूर्तिमान धर्म तथा चेला कितना उच्छृखल, असहिष्णु और स्वार्थी ? कैसा विचित्र साथ हुआ !
: १५ श्री वर्धमान सदैव ध्यान में ही रहते । गोशाला लोगों के प्रति उपद्रव करता और फल-स्वरूप खूब मार खाता और अपने साथ हो वह गुरु को भी मार खिलाता । चेले का व्यवहार तो देखिये ! ___ एक दिन श्री वर्द्धमान चले जारहे थे। गोशाला भी उनके साथ हो था। रास्ते में कुछ सिपाही मिले। सिमाहियों ने पूछा- "तुम कौन हो?"। श्री वर्द्धमान तो ध्यान में थे ही, अतः वे कुछ न बोले; किन्तु गोशाला ने भी ध्यान लगा लिया और वह भी कुछ न बोला।
सिपाहियों ने दोना को पकड़ा और बन्दी बनाकर उन्हें बड़े कष्ट दिये । किन्तु वर्द्धमान तो सच्चे साधु थे, भला सन्तों की परीक्षा सिपाही क्या कर सकते ?