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समय उसकी पूँछ में रस्सो बांधकर, उसे श्रीपाल के महल की दीवार पर फेंकी। वह गोह, लोहे के कीले की तरह दृढ़ होकर वहीं चिपट गई । अब धवलसेठ ने उस रस्सी के सहारे ऊपर चढ़ना प्रारम्भ किया। जब वे आधो-दर पहुँचे, तो हाथ में से वह डोरी खिसक गई, जिसके कारण वे धम से पत्थर पर आ गिरे और तत्क्षण उनके पाणपखेरू उड़ गये।
धवलसेठ की सारी सम्पत्ति, उनके मित्रों को सौंप दी गई।
राजा की एक कुमारी ने, यह प्रतिज्ञा की थी, कि मैं अपना विवाह उसी मनुष्य से करूँगी, जो मुझे वीणा बजाने में हरा दे । श्रीपाल ने, उसे वीणा बजाने में जीतकर, उसके साथ भी विवाह कर लिया।
एक अद्भुत-रूपवाली राजकुमारी ने,अपना स्वयंवर रचवाया था। श्रीपाल वहाँ पहुँचे और वरमाला उन्हीं के गले में डाली गई।
एक राजा की लड़की ने, यह निश्चय किया था, कि अमुक दोहे की पूर्ति करनेवाले मनुष्य के साथ ही मैं अपना विवाह करूँगी। उस दोहे की पूर्ति श्रीपाल ने करके, उस कन्या से अपना विवाह कर लिया ।