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विमलशाह
अतः उनका आदर-सत्कार किया । वीरमती तथा विमल वहीं रहने लगे।
: ३ :
पाटण के वीर - मंत्री का पुत्र विमल, अब गरीबी में पलने लगा । वह किसी-किसी समय खेत में जाता और मामा को खेती के काम में मदद देता । कभी घोड़ी बछेड़ा अथवा गायभैंस लेकर जंगल में जाता और वहाँ उन्हें घास चराता । उसे न तो ऐसे काम करने से इनकार ही था और न कुछ अफसोस ही होता । उलटा इस काम में उसे बड़ा आनन्द आता।
जब वह जंगल में जाता, तो तीर-कमान खेलता, घोड़े पर सवारी करता, झाड़ों पर चढ़ता और तालाब में तैरता था । दिन भर इसी तरह आनन्द लूटकर शाम को वह अपने घर लौट आता ।
इस प्रकार का जीवन व्यतीत करने के कारण, विमल का शरीर बड़ा हृष्ट-पुष्ट होगया । बाण-विद्या में तो वह अद्वितीय था । धीरे-धीरे उसकी बाण-विद्या की प्रशंसा सब जगह होने लगी ।
: ४ :
पाटण के नगरसेठ श्रीदत्त के, श्री नामक एक जवान - कन्या थी । इस कन्या के लिये वे योग्य वर की तलाश कर रहे थे । उन्होंने, अनेको स्थान देखे, किन्तु कहीं भी वर