Book Title: Hindi Granthavali
Author(s): Dhirajlal Tokarshi Shah, Bhajamishankar Dikshit
Publisher: Jyoti Karayalay

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Page 377
________________ को अब कौन जाता है " । यों सोचकर, उसने वह सब साग श्री धर्मरुचिजी को बहरा दिया। ____धर्मरुचिजी, यह आहार लेकर अपने गुरु धर्मघोष मुनि के पास आये । उस आहार को सँघकर गुरुजी ने धर्मरुचिजी से कहा, कि-" हे शिष्य ! तुम इस आहार का उपयोग मत करो, नहीं तो यह तुम्हारे प्राण ले लेगा। जहाँ कीड़े-मकोड़े आदि जीव न हों, वहाँ जाकर इसे परठ आओ और भविष्य में फिर ऐसा आहार मत लाना।" धर्मरुचिजी, उस आहार को परठने के लिये गाँव से बाहर चले । वहाँ पहुँचने पर, साग के रस की एक बूंद पृथ्वी पर गिर पड़ी। इस बूंद की सुगन्धि से लुभा, बहुतसी चींटियं वहाँ आकर उससे चिपट गईं । तत्क्षण वे सब मर गईं । यह देखकर, धर्मरुचि मुनि ने विचार किया, कि-'अहो ! इस साग की एक ही बूंद से इतने अधिक जीवों की मृत्यु होगई, तो इस सब साग के जमीन पर पड़ने से कितने अधिक जीवों का संहार होगा ? अतः यही उचित है, कि मैं ही इसे खाकर मर जाऊँ । मेरे मरने से, बहुत-से :जीव बच जावेंगे।" यों सोचकर, वे सब साग स्वयं खागये और संसार के सब जीवों से क्षमा माँगकर, ध्यान लगा लिया। थोड़ी ही देर में जहरीले साग के प्रभाव से मुनिराज का शरीर छूट गया । अन्त-समय तक शुभ-भावना रखने के कारण, वे देवलोक को गये।

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