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वस्तुपाल-तेजपाल वीसलदेव और राजपुरोहित-सोमेश्वर ने, अपने नेत्रों से आँसू गिराते हुए इन्हें विदा किया।
रास्ते में वस्तुपाल को बीमारी ने घेर लिया और उनकी मृत्यु होगई। उनके शव का अन्तिम संस्कार शत्रुजय पर किया गया और वहाँ एक जैन-मन्दिर का निर्माण हुआ। उनकी मृत्यु के बाद ललितादेवी ने भी उपवास करके अपना शरीर छोड़ दिया। इसके पाच-वर्ष पश्चात, तेजपाल का देहान्त हुआ और अनुपमादेवी ने पति-वियोग होते ही, अनशन प्रारम्भ करके अपनी सांसारिक-लीला पूर्ण कर दी।
संसार के अत्यन्त मूल्यवान रत्नों के जाने पर भला किसे दुःख न होगा?
मनुष्यजाति की भूषण-स्वरूप, ऐसी अनेक-जोड़िये संसार में उत्पन्न हों और आदर्श-जीवन बिताकर समाज की शोभा बढ़ावें।
शिवमस्तु सर्वजगतः