Book Title: Hemchandrika Vyakaranam
Author(s): Vijaylavanyasuri
Publisher: Gyanopasak Samiti

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Page 120
________________ ( १०१ ) परस्य प्रत्ययस्य उतो वा लुरू, अविति व-मादिप्रत्यये॥सुनुवः सुन्वः, सुनुमः सुन्मः,सुनु, सुनुतात, असावीत्, असोष्ट ॥१॥ "चिगट-चि चयने" चिचाय, चिकाय, चिच्यतुः। "धूगट्-धू कम्पने" अधावीत्, अधोष्ट, अपविष्ट, धविता, धोता ॥ "वृगट्-वृवरणे" अवारीत् । वृ-ऋदन्तधातोरात्मनेसिजाशिषोरिट् वा ॥ अवृत, अवरिष्ट, अवरीष्ट, ववरिथ, ववृव, वियात, वरिषीष्ट, वरिता, वरीता ॥२॥ इत्युभयपदम् ॥ अथ परस्मपदम् ॥ "हिंद-हि गति-वृद्धयोः" जिघाय ॥ "श्रृंट-श्रु श्रवणे" शृणोति, शुश्रोथ, शत्रुव ॥ "आप्लूट-आप व्याप्तौ"आप्नवः, आप्नहि,आपत्॥"कृवुट-कृण्व हिंसा-करणयोः"कृणोति, चकृण्व॥"धिवुट-धिन्व गतो" धिनोति, दिधिन्व ॥३॥इति परस्मैपदम्।। अथात्मनेपदम् ॥ "अशौटि-अश् व्याप्तौ" अश्नुते, अश्नुवाते, आ

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