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चरियं च कप्पिय वा आहरण दुनिमेव पन्नत । अत्थस्स साहणट्ठा इंधणमिव ओयणट्ठाए ॥
( नन्दी सूत्र मलयगिरि वृत्ति) जैसे चावल को पकाने के लिय लकडियां साधन है वैसे ही अर्थ की सत्यता के किए कल्पना साधन है और चरितार्थता उद्धरण हैं ।
अर्थसत्ता के व्यापक भण्डार शास्त्र शाश्वत हैं। वेदों को अपौरुषेय माननवाले महाभाग मणीषियों का यह ध्रुवा चिन्तन हैं । जैन बन्धुओं ने भी द्वादशांगी को चिरन्तन मानी हैं
एसा दुवाललगी न कयावि नासि न कयावि न भवइ ।
न कयावि न भविस्सह । ध्रुव, नीया, सासया अक्खाया, अव्यया अव्वाबाहा अट्ठिया नित्त्वा ॥
यह द्वादशांगी न कभी हुई न है और न होगी केवल ध्रुव नित्य शाश्वत अक्षत अव्यय अव्याबाध इत्यादि है ।
इन्हीं चिरन्तन शाश्वत ग्रन्थो में ज्ञान का माधुर्य उपलब्ध होता है जीवन का सजीव सत्य स्वयं मे उतरता जाता है। सजीव सत्य से शीलसम्पन्न बन शौर्य ता की शक्ति का साधक होता ज्ञान की गरिमा का आराधक होता है । पुनीत चरितआख्यानो का व्याख्याता होता है । आख्यात चरितों में कवितत्व शक्ति का स्पृष्ट परिचय होता है । वाणी और अर्थ की एकता में सकेलित साहित्य सनातन बनते है | महाकवि कालिदास ने वाणी अर्थ को सम्पृक्त समजा है जैसे भगवान् शंकर से भगवती उमा पृथक नहीं है
वागर्थाविव सम्पृक्तो.. पार्वती परमेश्वरो । (रघुवंश)
वाणी और अर्थको एकता में आजदीन तक हमारा वाङ्मय प्रगति करता आ रहा है । वाणी की विज्ञान कला माधुर्य से मकरन्द छलकाती है, ऐश्वर्य से दिव्यता झलकती है सौन्दर्य से स्निग्धता से छलकाती है। इसलिए काव्य को रसात्मकवाक्य कहा गया है-वाक्यं रसात्मक काव्य (साहित्यदर्पण)
प्रस्तुत 'हीरसौभाग्य महाकव्य' जीवन की एक कहानी, है जो जोवन जगत् में ज्योतिर्मय बन गया । उस जीवन का नायक गुर्जधराका एक त्यागी, तपस्वी महाज्ञानी निर्ग्रन्थ मुनि था । जो आचार्य बनकर आचारों का आचरण बढाता रहा विचारों का विवेक फैलाता रहा और समाजको सत्य का सार समजाता रहा, उसी स्तन नामधन्य आचार्य विजयहीरका जीवन परिचायक यह ग्रन्थ है । परिचय को प्रमाणिक बनाने में देवविमलगणिजीने सत्य शाश्वत साहित्य का अवलम्बन किया हैं । शाश्वत साहित्यके समुचित अभ्यास से कवितत्व शक्ति का जन्म होता हैं । कवित्व शक्ति समाज की संरक्षिका युक्ति हैं और कवि के लिए काव्य की उक्ति है । इसलिए साहित्यकारो की अल्पबुद्धिवालो के लिये यह आह्वान हैं कि वे काव्य की सेवा से धर्म अर्थ काम और मोक्ष की उपलब्धि कर सकते हैं-चतुवर्ग फल प्राप्तिः सुखादeपवियामपि ।