Book Title: Heersaubhagya Mahakavyam Part 01
Author(s): Devvimal Gani, Sulochanashreeji
Publisher: Kantilal Chimanlal Shah

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Page 13
________________ काम्यदेव यतस्तेन ........ ||RA- .. (साहित्य दर्पण) देवविमलगणिजी “हीरसौभाग्य" में पूर्व के कवियों के अनुजीवी बनकर आते हैं, और इस काव्य पर, स्वयं मुग्ध होकर स्वपश व्याख्या प्रस्तुत करते हैं। स्वपक्षव्याख्यामे नैषध के उद्धरण देकर स्वयं की उत्प्रेक्षा को सिद्ध करते हैं। अतः यह सिद्ध होता जाता हैं कि कवि उत्प्रेक्षा प्रिय हैं और नैषध महाकाव्य के अध्येता भी हैं । भाषा को भाव प्रधान बनाते हुए हृदयस्पर्शिनी भी रखाना चाहते हैं। श्री देवविमलगणि पुराणो को भी लेकर साहित्य संसारमें आते हैं और महर्षिव्यास के विशाल वाङ्मय के विज्ञाता बन चमकते हैं । काव्य के मंगलाचरणमे ही अपने आराध्य प्रिय श्री पार्श्व की कीर्तिगगा जैसी हैं ऐसा स्पष्ट लिखते हैं त्रिमूर्तिर्यत्कीतिरासीत् त्रिदशसुवन्ती जिस प्रकार भगवती भागीरथी स्वर्ग मृत्यु और पाताल में प्रवाहित रहती हैं वैसे ही भगवान् को कीर्ति विचरती रही हैं। उपासना से आत्माको असीम सत्वका साक्षात्कार होता हैं और आमोदशक्ति का लाभ मिलता हैं । अतीत से कवियोकी सिद्धि साधना रही हैं । कविकुलशिरोमणि कालिदास भक्त बनकर कलाकार हुए सेवक बनकर साहित्यकार हुए, उपाध्याय यशोविजयजी ॐकार का जापकर यशस्वीरहे सन्त तुलसी श्रीरामके चरणरज रहकर राममय हो गये और साहित्यमय बन गए। योगेश्वर श्रीकृष्णकी भक्तिमें वात्सल्य रसको उद्वहते सूरदास कवियों की गणनां में आ गये हैं। आचार्य मानतुंग श्रीऋषभदेवके रंगमें रंगीले बनकर स्तोप्रकार कहलाए भक्ति से भगवान का सम्बन्ध चिरन्तन है। भक्ति में भावुकता की सार्वभोम सत्ता हैं। समर्पणमें स्नेहकी सजीव छटा हैं। भक्ति निर्दोषतामें निपुर्ण रहती हैं निःसंगता में नैषिक कहलाती हैं। हीरसौभाग्य के कर्ता उपासना मार्गका मर्म समझाते हुए कहते हैं-सम्यगुपासिता हि वाग्देवता कविन्दृणाम् साधारणों कवित्व शक्ति विश्राणयति । अतो वाग्वादिनों नमस्कुर्वन कविराह-- .. प्रीणाति या प्रासदृश श्चकोरी विभावरी वल्लभ प्रण्डली वा । .. तमस्तिरस्कारकरी सुरीतां भक्तेनते गोचरयामि वाचम् ॥२॥ सरस्वती चन्द्रमण्डल की चांदनी जैसी है और विद्वानों की आंखे चकोर जैसी रसिक हैं । जैसा चांदनी चकोरों को तृप्तकर देती हैं वैसे ही कवियों की आंखों में चिन्मयी शारदा सुधारस छलका देती हैं। क्योंकि तृप्ति की विज्ञप्ति और समय की विस्मृति नयनो में रहती हैं। भक्तिप्रधान द्रष्टिकोण से शारदा का स्तवन कहीं गद्य में और कहीं पद में भी उपलब्ध होता हैं । जैन प्राकृत वाश्मल में भी भगवती सरस्वती श्रुतदेवता कहा है और शानावरणीयकर्मकी विनाशिका भी माना हैं। सुअ देवया भगवई नाणावरणीय कम्मसंघायं । तेसिं खवेउ समयं....

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