Book Title: Heersaubhagya Mahakavyam Part 01
Author(s): Devvimal Gani, Sulochanashreeji
Publisher: Kantilal Chimanlal Shah

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Page 15
________________ ईश्वराय शरणमे कितनी अमोध संकल्पशक्ति रहती है । उसका अनुमान प्रमाण केवल श्राद्धालु का चित्त ही जानता है । "हीरसौभाग्य" में गुजरात देश को भगवान शंकर का स्वरूप ही कहा हैजिस प्रकार शंकर भस्म रमाते हैं वैसे ही गुजरात वैभव रमाता हैं । काल के विजेता भगवान चन्द्रशेखर हैं वैसे ही गुजरात देश कलिकालका विजेता है। जैसे भगवान भूतनाथ वृषारोहा है वैसे गुजरातभी वृषरुपी धर्मपर आरूढ है । शंकर के मस्तक पर गङ्गा बहती है तो गुजरात पर सरस्वती बहती है । विभूतिभाकालभिदकदुर्गः क्रीडत्कुमारः सकलाधरश्च । अहीनभूषः सवृषः सुपर्वसरस्वतीभृद्द भववद् बभौयः ॥६९।। इस श्लोक में उपमाका औचित्य कितना सुन्दर दिखाया है। जहां पर कार्तिकेय जैसे तेजस्वी बालक गुजरात की धरापर क्रीडा कर रहे है कवि कान्य कुशलता। कविके समयमें गुजरात धरा पर मुसलमानों का शासन था । महमद नामक बादशाह गुजरातमें राज्य करता था। फिर भी प्रजा का जीवन शान्तिमय था । लीलापति विष्णु को लक्ष्मी के साथ मनोरंजन करने के लिए इस गुजरात देश का विधाताने निर्माण किया है । इस पुण्य पावन नी घरती पर आनंदपुर (वडनगर) जैसे नगर है । तारंगाजी जैसे तीर्थ हैं। जहां पर कुमारपाल जैसे राजाने सप्तखंडका जिनालय बनाया है । दूसरा तीर्थ शद्धेश्वर हैं इस तीर्थमें सजन नामक मंत्रीने भगवान् पाचप्रभु की प्रतिमा स्थापित की हैं। तीसरा तीर्थरूप नगर खंभात हैं ॥ . जहां पर स्थम्भनपार्श्वकी आराधना कर नवांगी टीकाकार श्री अभयदेवसूरिजी रोग. मुक्त हुए थे । सरस्वती साबरमती जैसे नदियां बहती हैं । धनधान्यसे ऐसे गुजरात देशमें पालनपुर नामक नगर हैं । वहां कुराशाह मामक एक शेठ रहते थे उनके नाथी नामकी पत्नी थी। उन्हीं के संतान आचार्य विजयहिरसूरि थे। - लेखक गुजरात की संस्कृति का खूब ही पैनी द्रष्टि से वर्णन करते है और वर्णन में मुख्य उत्प्रेक्षा का ही आधार हैं । धार्मिक द्रष्टि से उस समयका गुजरात गौरवशाली था, शिल्पकला उत्तरोत्तर पनप रही थी, वैभव का उपयोग दान और भोग में समान रूप से हो रहा था। प्रकृति समय पर जल वरसाती थी । वसुधा सदा घान्यदायिनी थी। गौमहिषी के दूध की नदियां चलती थी। जन जीवन की दिन चर्या में विप्लवनहीं था। कलेशो की कटुतासे समाज मुक्त था । समय-समय पर धर्माचार्यों के समागमो के संयोग मिलते रहते थे । इसलिये जनतामें धर्म, अर्थ काम और मोक्ष की भावना समान थी। त्याग, तप सदाचार का समाजमें आदर था । समाज स्वयं स्वावलम्बी था:

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