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इस कालमें संस्कृत साहित्य की सच्ची साधना करनेवाली एक पूर्णपरीचित विदूषी जैन साध्वी है। जिनका नाम सुलोचनाश्रीजी है विचारों से विशुद्ध प्रकृति की सन्निधि है और आचारों की अनुपम प्रतिमा है । उन्हीं की जिज्ञासा को लेकर मैने इस ग्रन्थ पर उपन्यास का आवरण चढाया हैं । विचक्षण आर्या ने पौंढता से गुजराती भाषा का समीचीन अनुवाद किया हैं । जहांतक में समझसका हु वहां तक लेखिका सुलोचनाश्रीजी भावानुवादमें विद्यावती है । आशा हैं इस ग्रन्थ का गुजराती अनुवाद गुजरात निवासियों के लिए और गुजराती भाषा के शाताओं के लिए उपयोगी सिद्ध होगा। साथमें गुजराती साहित्य की वृद्धि भी होगी । सुशिक्षित श्रमणीवृन्द का इस समय यह कर्तव्य हो जाता हैं कि वह सावधान होकर संस्कृतिको सुरक्षा के लिए कटिबद्ध हो जाय और साहित्य सुरक्षा के लिए व्रत्तचित्त बन जाय ।
इति शुभम्
सुकृतकाण्ड जैनधर्मशाला -इन्दोर(मध्यप्रदेश) सं०-२०२८. श्रावणशुक्लपूर्णिमा, गुरुवार
दि. २४-८-७२
साहित्यसेवियों का सेवक पं. गोविन्दराम व्यास
हरजी . (राजस्थान)