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उपन्यास
(સંસ્કૃત અને સંસ્કૃતિના વિચક્ષણ વિદ્વાન પંડિત પ્રવરશ્રી
ગોવિન્દરામ વ્યાસે આ ગ્રંથ પર પ્રભાવશાળી પ્રસ્તાવના લખી लेखक: पं. गोविन्द व्यास
छ. ५। अवश्य या प्रस्तावना पांये. ] यह कमनीय-करुणामयी-काश्यपी, वात्सल्यमयीः विश्वम्भरा वसुन्धरा विलक्षण विबुधों की विद्यास्थली है । विचक्षण विवेचकों की विवेकवाटिका है। मुक्तसंग-मुमुक्षुओं की मनोशाला है । तपःपूत तपोनिधियों की साधना भूमि है । स्वान्तः सुखी सन्त जनों की संतोषकुक्षि है। क्रान्तदर्शी कल्पाशील कवियों की कल्पपीठिका है। शौच्यैशील सूरवीरों की परीक्षा मेदिनी है। धर्मधीर धनिकों की आधार धरा है। कर्मवीर कोविदों की कर्मभूमी है । दायित दानियों की दाक्षिण्यशाला है । ईश्वरावतार की एश्वर्यशालिनी लालामयी जन्मभूमि है । स्वगत-सुगत-तथागतों की अतिथ्यवाहिनी आदर्शमाता है । तीक्ष्ण तपस्वी-तीर्थकरों की तारुण्यहारिणी निर्वेदगुटिका है। लालितलोकसेवकों की सेवामयी चतुरशाला है । पापहारिणी पतित पावनी गंगा सिन्धु व्यास ब्रह्मपुत्रा की क्रीडास्थली है । विन्ध्यहिमालय मलयावुद की माधुरी मूर्ति है। वसन्त ग्रीष्म वर्षा शारद की सौभाग्यसुषमा है। चन्द्र की चित्तहारिणी चिन्मयी पीयूष प्रिया पृथ्वी है । भानु की भासमयी भवशोषकारिणी भगवती भूमि है । राका की रजतमयी रंगशाला है । अज्ञानमयी अमावास्या की आर्दभुता है। चंचल समीर की गन्धमयी विपणि है । हिरण्य रजतरत्नों की प्रकाश प्रसविनी विगुहा है।
ऐसी आर्यधरा का विद्याभ्यांसी विप्रब हुँ। आदान-प्रदान से व्यापारी हुँ। शान विज्ञान की कलाओं में किशोर कुमार हुँ । वाङ्मय के विपुल विवेक भण्डार का प्रार्थों हु संस्कृतियों का छात्र हु। सम्यताओं का स्नातक हु। साहित्यका सेवाभावीसेवक हुँ । भाषाओं की भव्यता का भिक्षुक हुँ। मां भारती की स्मृतिमें भूला हुआ भवभव का भ्रमर हु। वैदिक-परंपरा मेरी आत्मा है, जैन परम्परा मेरी जिज्ञासा है, बौद्ध परम्परा मेरी बुद्धि है । जिज्ञासा और बुद्धि के साथ-साथ चलता हुआ साहित्य के सदन मे आता हूं। . नानाविध साहित्यग्रंथो का सेवक बन समीप में जाता है वैसे ही तीसरी बार इस समय 'हीरसौभाग्य महाकाव्य' के सान्निध्य में आ रहा हु । प्रथम वार विद्यार्थी बन होरसौभाग्य का सार समझने गया । दूसरी बार सौम्यसुशील मुनि श्री भद्रबाहु का पाठक बनकर पासमें गया । तीसरी बार इस समय श्रद्धासुमनों की वाक्य पुष्पाजलि को लेकर हीरसाहित्य-उपन्यास का आराधक हो रहा हूँ।
वर्षा का वैभव, विज्ञान विचार और वितर्क की कलाओं को चमका रहा है। सावन की रिमझिम बरसती सप्रिए नयनो में रम रही है । सावनमें साहित्यका सेवन स्वात्मप्रकर्ष को प्रगुणित करता है । सावन सहभाव का मास है साहित्य सहितभाव का स्वरुप है । 'सहितस्य भाव सहित्य कर्म वा साहित्यम्" ____ "हीरसौभाग्य महाकाव्य" में साहित्य की समयोचित कलाओं का सन्निवेश किया हैं । अलंकार साहित्य के उद्मट विद्वान भामहने कहा हैं