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कृति उपरथी प्रत माहिती प्रत विशेष- पृष्ठ माहिती नथी.(जैन प्राच्य विद्याभवन) पत्रांक घिसा हुआ है. झेरोक्ष पत्र-५४ लिखा हुआ है
परन्तु कुल ५३ पत्र ही है.
कुल झे.पृष्ठ-५४, डीवीडी-१०३/१०४ अनेकार्थसङ्ग्रह-(सं.)अनेकार्थकैरवाकरकौमुदी टीका (अनेकार्थकैरवाकरकौमुदी टीका), (अनेकार्थकैरवकौमुदी टीका)
आचार्य-महेन्द्रसिंहसूरि, गुरु-आचार्य-धर्मघोषसूरि, सं., गद्य, ग्रं.१००००, आदि वाक्यः परमात्मानमानम्य
निजाऽनेकार्थसङ्ग्रहे | वक्ष्ये टीकामनेकार्थकैरवाकरकौमुदीम् ||१||... पाताखेत २२, पृ. २८६, अनेकार्थसङ्ग्रहटीका, संपूर्ण प्रत विशेष- कर्त्ता तरीके हेमचन्द्रसूरि आपेल छे.
डीवीडी-६१/६३ पाकाहेम ६६१८, पृ. १७१, हैमअनेकार्थनाममाला अनेकार्थकैरवाकरकौमुदीवृत्तिसहित, वि-१५मी, संपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-१५१ पाकाहेम १०६८२, पृ. २०२, हैमअनेकार्थनाममाला अनेकार्थकैरवाकरवृत्तिसह, वि-१६६५, संपूर्ण अनेकार्थसङ्ग्रह-(सं.)टिप्पण
सं., गद्य, अताका ४७७- पे.क्र. २, पृ. ९३A-१६२A, अनेकार्थसङ्ग्रह आदि नाममालाओ (भाग-२), संपूर्ण
पे. नाम- अनेकार्थसङग्रह सह टिप्पण, पे. विशेष- ग्रन्थान-१८२६. अपूर्ण. बीच-बीच के कुछ पत्र नहीं है. प्रत विशेष- पृष्ठ माहिती नथी. पत्रों को क्रमबद्ध किये बिना ही झेरोक्ष किया हुआ था अतः पाठानुसन्धान
व उपलब्ध पत्रों को क्रम में करने हेतु झेरोक्ष पत्रांक सुधारा गया है.
कुल झे.पृष्ठ-६५, डीवीडी-१०३/१०४ अताका ४८६- पे.क्र. ३, पृ. ९५, अभिधानचिन्तामणि सह टिप्पण आदिनाममालाओ (भाग-१), अपूर्ण पे. नाम- अनेकार्थसङ्ग्रह-षट्स्वरकाण्ड पर्यन्त सह टिप्पण, पे. विशेष- अपूर्ण. प्रारंभ से त्रिस्वरकांड
श्लोक-१०६१ तक के पाठ नहीं है. प्रत विशेष- पृष्ठ माहिती नथी.(जैन प्राच्य विद्याभवन) पत्रांक घिसा हुआ है. झेरोक्ष पत्र-५४ लिखा हुआ है
परन्तु कुल ५३ पत्र ही है.
कुल झे.पृष्ठ-५४, डीवीडी-१०३/१०४ अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र (अन्तगडदशाङ्गसूत्र)
आचार्य-सुधर्मास्वामी, प्रा., ग्रं.८९०, आदि वाक्यः तेणं कालेणं तेणं समतेणं चम्पा णाम णयरी... सत्तमस्स
उवासगदसाणं अयमढं पण्णत्ते।... पाताखेत २७- पे.क्र. २, पृ. ?, पञ्चाङ्गी उपासकदशाङ्ग-अन्तगडदशा-अनुत्तरौपपातिकदशाङ्ग-प्रश्नव्याकरण
विपाकसूत्र, संपूर्ण प्रत विशेष- विशिष्ट प्रतिलेखन पुष्पिका.
डीवीडी-६२/६४ पातासंघवी ३३-१- पे.क्र.२, पृ. १७-३१, उपासकदशाङ्ग आदि, वि-१४५५, संपूर्ण
पे. विशेष- सारी छे.. प्रत विशेष- विशिष्ट प्रतिलेखन पुष्पिका.
डीवीडी-२५/४३ पातासंघवी १२४-१- पे.क्र. २, पृ. ४६-८४, उपासकदशाङ्गसूत्र आदि पञ्चोपाङ्ग, संपूर्ण
डीवीडी-३४/५२ पाताहेसं १७१-१५- पे.क्र. १, पृ. १-१४, अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, संपूर्ण
डीवीडी-९/१८ पाकाहेम १५२, पृ. २२, अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र, संपूर्ण प्रत विशेष- मूलनु परिमाण ८९५ ग्रंथाग्र आपेल छे.
कुल झे.पृष्ठ-२३ पाकाहेम १५३, पृ. २४, अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र, संपूर्ण
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