Book Title: Gyanpanchami Author(s): Manek Bahen Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha View full book textPage 7
________________ बीजी आवृत्तिनी प्रस्तावना. उदार दीलनां माणेक बहेन पासेथी प्रथमावृत्तिनी तमाम बुको थोडा वखतमांज भेट तरीके अपाइ गइ एटले तरतमांज बीजी एक हजार नकल छपाववा तेमणे इच्छा जणावी एटले मूल्यथी लेवा इ. च्छनारने पण आ बुकनो लाभ मळी शके तेटला माटे एक हजार नकल अमारी तरफथी वधारीने आ बीजी आवृत्तिनी बे हजार नकलो छपाववामां आवी छे. प्रथमावृत्ति करतां प्रारंभनां भागमा तो सहज अक्षर शुद्धिज करवामां आवी छे, परंतु प्रांते आवेला ज्ञानपंचमीना देववंदनना अर्थ आ आत्तिमा जे दाखल करवामां आवेला छे तेनी अंदर प्रथम करतां घणोज सुधारो वधारो करवामां आव्यो छे. एटलुं ज नहीं पण देववन्दनना अर्थ अने नोट तद्दन नवांज लखवामां आव्या छे. आ अत्युत्तम प्रयास 'पूज्यपाद अनेक सद्गुणालंकृत आचार्य श्रीवि. जयनेमिसरिना शिष्य पूज्यपाद पन्यासजी श्रीउदयविजयजी गणिए' कयों छे तेने माटे तेओ साहेबनो अंतःकरणथी आभार मानवामां आवे छे. एओ साहेबे मेळवेला ज्ञान- अने तेमने थयेला अपूर्व अनुभव बोधर्नु आमा किंचित् दिग्दर्शन कराव्युं छे. पाते मेळवेला ज्ञाननो आ प्रकारे अनेक जीवोने लाभ मळी शके छे. उत्तम मुनिमहाराजानु ए कर्तव्यज छे. पाशा छे के आबुक अनेक जीवोने उपकारक थशे. इत्यलम्. श्रावण शदि ५. ) श्री जैन धर्म प्रसारक सन्ना. सं. १९७० । जावनगर.Page Navigation
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