________________
सातवाँ अध्याय ]
ज्ञान-लाभका उद्देश्य ।
rrn. ......
क्षेप करना समाज और राजाके लिए प्रयोजनीय हो उठता है। अगर कहा जाय कि मादक पदार्थ सेवन करनेवाला अन्यका अनिष्ट नहीं करता, केवल अपना ही अनिष्ट करता है, तो उसका उत्तर यह है कि पहले तो यही बात ठीक नहीं कि मादक पदार्थ सेवन करनेवाला मनुष्य केवल अपना ही अनिष्ट करता है। वह कमसे कम अपने परिवार और परोसीके लिए अनिष्ट और अशान्तिका कारण तो अवश्य ही बन जाता है। इसमें रत्ती भर सन्देह नहीं। इसके सिवा अगर यह स्वीकार कर लें कि वह केवल अपना ही अनिष्ट करता है तो भी यह नहीं कहा जासकता कि उसके कार्य में हस्तक्षेपका अधिकार दूसरेको नहीं है। अगर आत्महत्या करनेवालेकी स्वाधीनताको रोकना अन्याय नहीं है तो जो नशेबाज अपने स्वास्थ्य और ज्ञानको नष्ट करनेमें लगा हुआ है उसे उस कार्यसे निवृत्त करनेमें जो कुछ उसकी स्वाधीनतामें हस्तक्षेप हो उसे अन्याय नहीं कह सकते।
मादक पदार्थ सेवन करनेकी प्रवृत्ति अतीव प्रवल हुआ करती है; अतएव उसको रोकनेके कठिन नियम निष्फल हो जानेकी संभावना है, यह आपत्ति अवश्य ही विचार करनेकी बात है। जो नियम निश्चय ही तोड़ा जायगा, उसे चलाना केवल निष्फल नहीं, अनिष्टजनक भी है । कारण, दोषको रोकना जो उसका उद्देश्य था वह तो रह ही गया, उसके ऊपर नियमलंघनके कारण और एक दोषकी उत्पत्ति हुई। इतना ही नहीं, नियमलंघनापराधके दण्डसे बचनेके लिए झूठ-फरेब आदि और भी अनेक प्रकारके दोष बढ़ गये। ___ अतएव लोगोंकी असाधु-प्रवृत्तिको पहले उपदेशके द्वारा कुछ-कुछ संशोधित करके उसके बाद कठिन नियमकी स्थापनाके द्वारा उसके निवारणकी चेष्टा युक्ति-सिद्ध है। किन्तु दूसरी ओर यह भी स्मरण रखना होगा कि जहाँ प्रवृत्ति अत्यन्त प्रबल है वहाँ केवल उपदेश-वाक्यके अधिक फलप्रद होनेकी संभावना नहीं रहती। ऐसे स्थल पर उस प्रवृत्तिको चरितार्थ करने में जिससे बाधा हो, ऐसे नियमकी सहायता आवश्यक है। उस नियमके एकदम निष्फल होनेकी कुछ भी आशंका नहीं है। कारण, प्रबल प्रवृत्ति जैसे अप. नेको चरितार्थ करनेके लिए लोगोंको उत्तेजित करती है, वैसे ही उपयुक्त पदार्थक अभावमें चरितार्थ न हो सकने पर धीरे धीरे क्षीण भी हो जाती है। मगर हाँ, ऊपर कहे गये नियमको अत्यन्त सावधान और सतर्क हो कर