Book Title: Gyan aur Karm
Author(s): Rupnarayan Pandey
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya

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Page 331
________________ चौथा अध्याय] सामाजिक नीतिसिद्ध कर्म। ३०७ रोजगारसे अलग करनेले निवृन करके, उस रोजगारको एकहत्या कर लेना (अपने ही हाथमें कर लेना) अन्याय नहीं कहा जा सकता। कारण, उसके द्वारा अन्य किसी व्यवसायीकी स्वाधीनतामें किसी तरहकी बाधा नहीं पड़ती। और एकहत्था रोजगार करनेवाले रोजगारी लोग अपने रोजगारको विस्तृतरूपसे चलानेमें समर्थ होकर उस रोजगारके सम्बन्धका काम अपेक्षाकृत थोड़े खचमें अच्छी तरह निवाह सकते हैं, और उस रोजगारकी चीजको थोड़े खर्चमें तैयार करके थोड़े मूल्यमें बेच सकते हैं। एकहत्या रोजगारका यह फल सर्वसाधारणके लिए हितकर है। किन्तु एकहत्था रोजगारी अपनी इच्छाके अनुसार अपनी चीजकी दर कायम कर सकता है, और अपने रोजगारकी चीजका परिमाण इच्छानुगर कम या अधिक कर सकता है, और उससे सर्वसाधारणकी क्षति होनेकी संभावना रहती है। इसके सिवा एकहत्था रोजगारी अगर भय दिखाकर या अन्य किसी अनुचित उपायने और किसीको वह रोजगार अलग न चलाने दे, तो उसका वह काम अन्यकी स्वाधीनतामें बाधा डालनेवाला है। ऐसे स्थलों में एकहत्या के अन्याय कहना पड़ेगा (१)। वकील वैरिस्टरोंके संप्रदायकी कर्तव्यता। वकील बैरिस्टरोंके संप्रदायकी कर्तव्यताके सबन्धमें समय समयपर जो प्रश्न उठते हैं, उनमेंसे निम्नलिखित चार विशेष विवेचनाके योग्य हैं। १-अपराधी या अन्यायकारीके पक्षका समर्थन कहाँ तक न्याय-संगत है। २-किसी मुकदमेकी पूर्व अवस्थामें एक पक्षका काम करके उसके उपरान्तकी अवस्थामें अन्यपक्षका कार्य करना कहाँतक न्याय-संगत है? ३-किसी वकील-बैरिस्टरको एक समयमें कई मुकदमें उपस्थित होने पर क्या करना चाहिए? ५-जो काम ले लिया है उसे करनेमें असमर्थ होनेपर उसके लिए ली हुई फीस लौटा देना आवश्यक है कि नहीं ? हड़ताल और एकहत्था व्यापारके सम्बन्धमें Sidgerrick's Political Economy, Bk II, Ch. X, marshall's Principles of Economics Bk. V, Ch. VIII, और Encyclopaedia Britannica VoL XXXIII, Article Strikes and Trusts देखो।

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