Book Title: Gyan aur Karm
Author(s): Rupnarayan Pandey
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya

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Page 345
________________ पाँचवाँ अध्याय । राजनीतिसिद्ध कर्म | प्रथम भागके छट्ठे अध्यायमें कहा जा चुका है कि राजनीति अत्यन्त गहन विषय है । मगर उसके साथ ही यह बात भी है कि राजनीतिक विषयका कुछ ज्ञान होना सभी के लिए आवश्यक है । कारण, राजा और प्रजा दोनोंके लिए राजनीतिसिद्ध कर्म कर्तव्य हैं, और राजनीतिविरुद्ध कर्म अकर्तव्य हैं । राजनीति दो कारणोंसे अतिदुरूह विषय है । एक तो राजनीतिक तत्त्वका निरूपण करना कठिन है । मनुष्यप्रकृति विचित्र है । वह देशकाल अवस्थाके भेदसे अनेक प्रकारके भाव धारण करती है । अतएव मनुष्य किसी तरहकी राजशक्ति पार्नेपर उसका कैसा प्रयोग करेगा, और किस प्रणालीसे शासित होने पर ही वह कैसा आचरण करेगा, यह ठीक करना सहज नहीं है । यद्यपि अनेक प्रकारकी शासन प्रणालियोंका फलाफल इतिहास दिखा देता है, किन्तु समाजकी वर्तमान परिवर्तित अवस्थामें किस तरहके परिवर्तन या संशोधनका क्या फल होगा, यह अनुमान करके ठीक कहा नहीं जा सकता। दूसरे, राजनीतिविषयक आलोचना भी यथायोग्य रूपसे और केवल सत्यपर दृष्टि रखकर होनेके पक्ष में विघ्न है । पूर्वसंस्कार और स्वार्थपरता के कारण अनेक लोग या तो राजाके पक्षपाती हैं, या प्रजाके पक्षपाती हैं। जो लोग निरपेक्ष हैं, उनमें भी अनेक लोग यह सोचकर कि उनके कथनसे राजा या प्रजाको प्रश्रय मिलेगा, असंकुचित भावसे समालोचना करनेमें कुंठित होते हैं । किन किन बातोंकी अलोचना होगी ? राजनीतिविषयक कुछ ज्ञान सभीके लिए आवश्यक है, इसीलिए, राजनीति दुरूह विषय होनेपर भी, उसके सम्बन्ध में यहाँपर कई एक बातोंकी अलोचना किये बिना रहा नहीं जा सकता। वे बातें ये हैं १ - राजा प्रजाके संबन्धकी उत्पत्ति, निवृत्ति और स्थिति । ज्ञा०-२१

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