Book Title: Gyan aur Karm
Author(s): Rupnarayan Pandey
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya

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Page 395
________________ छठा अध्याय ] धर्मनीतिसिद्ध कर्म । भी स्वास्थ्य-हानि होती है। फिर यह युक्ति भी उतनी प्रबल नहीं जान पड़ती कि एक-साथ बैठकर भोजन किये बिना हेलमेल नहीं बढ़ता। सदालापके द्वारा मनका मिलना ही उत्कृष्ट मिलन है। दावतमें एक साथ बैठकर भोजन करनेसे होनेवाला मिलन उस मिलनेकी अपेक्षा बहुत निकृष्ट श्रेणीका है। इसके सिवा इंग्लैंडमें हिन्दू-आश्रमकी स्थापना और वहाँ हिन्दुओंके आचार-विचार बनाये रखकर हिन्दूका रहना, ये दोनों बातें ऐसी हैं कि इनसे हिन्दू जातिका गौरव ही होगा, लाघव नहीं। विलायत-यात्रीके लिए हिन्दूके आचारले चलना कुछ कष्टसाध्य भले ही हो, असाध्य नहीं है। धर्म-संस्कारकोंको यह याद रखना आवश्यक है कि धर्मका परिवर्तन और धर्मका संशोधन ये दोनों जुदी जुदी बातें हैं। अगर हिन्दुधर्मके बदले और धर्म स्थापित करना कर्तव्य हो, तो वह जुदी बात है । किन्तु हिन्दूधर्मको बनाये रखकर केवल उसका संशोधन करना अभीष्ट हो, तो उसके किसी उत्कृष्ट अंश ( जैसे सात्विक और संयत आहारके नियम ) में किसी तरहका परिवर्तन करनेकी जरूरत नहीं है ।

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