Book Title: Gyan aur Karm
Author(s): Rupnarayan Pandey
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya

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Page 387
________________ छठा अध्याय ] धर्मनीतिसिद्ध कर्म । ३६३ प्रमाण मौजूद हैं कि हिन्दुओंकी मूर्तिपूजा सच्चे ईश्वरकी आराधना है, औ शिक्षित हिन्दूमात्र उसे इसी दृष्टिसे देखते और समझते हैं । हिन्दू जब मूर्तिकी पूजा करता है, तो उस मूर्तिको अनादि अनन्त विश्वव्यापि ईश्वरकी मूर्ति समझता है । असंख्य हिन्दू जिसका नित्य पाठ करते हैं उस महिम्नःस्तोत्रका एक श्लोक यह है त्रयी सांख्यं योगः पशुपतिमतं वैष्णवमिति, प्रभिन्ने प्रस्थाने परमिदमदः पथ्यमिति च । रुचीनां वैचित्र्यादृजुकुटिलनानापथजुषां, नृणामेको गम्यस्त्वमसि पयसामर्णव इव ॥ " अर्थात्, वेदत्रयी सांख्यशास्त्र, योगशास्त्र, पाशुपतमत, वैष्णवमत इत्यादिमेंसे यह श्रेष्ठ राह है, वह श्रेष्ठ राह है, इस तरह कह कर उनके अनुयायी लोग भिन्न भिन्न राहसे जाते हैं । रुचियोंकी विचित्रताके अनुसार टेढ़ी-सीधी राहोंपर चलनेवाले उन सब मनुष्योंका गम्य स्थान, हे महेश्वर, उसी तरह एक तुम्हीं हो, जिस तरह सब नदियाँ एक समुद्रहीमें जाकर मिलती हैं । सब हिन्दुओंके पूज्य ग्रन्थ भगवद्गीता उपनिषद् में कथित यह भगवद्वाक्य भी इसी बात को प्रमाणित करता है येऽप्यन्यदेवताभक्ता यजन्ति श्रद्धयाऽन्विताः । तेsपि मामेव कौन्तेय यजन्त्यविधिपूर्वकम् ॥ ( गीता ९।२३ ) अर्थात, हे कौन्तेय, जो लोग, अन्य देवताओंके भक्त हैं, और श्रद्धापूर्वक उनकी पूजा करते हैं, वे भी, विधिपूर्वक न होनेपर भी, उस तरह मेरी ही पूजा करते हैं 1 हिन्दुओं की साकार - उपासना यथार्थ में निराकार सर्वव्यापी ईश्वरकी ही उपासना है, और इस बातको स्पष्ट प्रमाणित करनेवाला, व्यासका एक सुंदर भावपूर्ण श्लोक नीचे लिखा जाता है— रूपं रूपविवर्जितस्य भवतो ध्यानेन यद्वर्णितम्, स्तुत्याऽनिर्वचनीयताऽखिलगुरोर्दूरीकृता यन्मया ।

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