Book Title: Gyan aur Karm
Author(s): Rupnarayan Pandey
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya

View full book text
Previous | Next

Page 389
________________ पाँचवाँ अध्याय ] धर्मनीतिसिद्ध कर्म । दूसरे, प्रवृत्तिपरतन्त्र मनुष्यकी मांसभोजनकी प्रबल प्रवृत्तिको कुछ संयत और निवृत्तिमुखी करनेके लिए, पूजामें देवताके उद्देशसे पशुबध विधिसिद्ध है, और अन्यत्र निषिद्ध है-इस तरह की व्यवस्था धर्मशास्त्रप्रणेता लोगोंके द्वारा स्थापित होना भी असंभव नहीं है। किन्तु चाहे जिस कारणसे पशुबलिदानकी चाल चलाई गई हो. उसे रोकनेकी बड़ी जरूरत है। ईश्वरकी प्रीतिके लिए जीवहिंसा प्रयोजनीय है, यह बात युक्तिके साथ मेल नहीं खाती । सात्विक पूजामें पशुबलिदानका प्रयोजन न होनेके प्रमाण भी हिन्दू शास्त्रोंमें यथेष्ट हैं (.)। ३ बाल्यविवाह-निवारण । हिन्दू शास्त्रोंमें पुरुषके बाल्यविवाहकी कोई विधि ही नहीं है। बल्कि प्रकारान्तरसे उसका निषेध ही देखनेको मिलता है (२)। लेकिन स्त्रीके लिए प्रथम रजोदर्शनके पहले ही, अथवा बारह वर्ष बीतनेके पहले ही, विवाहकी व्यवस्था (३) रहनेके कारण बाल्यविवाहको हिन्दू धर्मके द्वारा अनुमोदित कहना होगा। किन्तु उसके साथ ही शास्त्रमें लिखा है . काममामरणातिष्ठेद्गहे कन्यतुमत्यपि। न चैवेनां प्रयच्छेत्तु गुणहीनाय कर्हिचित् ॥' -मनु ९-८९। अर्थात्, रजस्वला होनेपर भी कन्याको, उसकी मृत्यु तक, क्वॉरी ही भले घरमें बिठा रक्खे, किन्तु गुणहीन वरके साथ कभी उसका ब्याह न करे। शास्त्र के इस वचन पर, और हिन्दूसमाजकी इस समय प्रचलित प्रथा पर दृष्टि डालनेसे समझ पड़ता है कि बारह वर्षकी अपेक्षा अधिक अवस्थामें और प्रथम रजोदर्शनके बाद भी कन्याका ब्याह होना एकदम हिन्दूधर्मके विरुद्ध लोग नहीं समझते । किन्तु प्रथम रजोदर्शनके बादका विवाह प्रशस्त नहीं, निन्दनीय है। अतएव बाल्यविवाहका निवारण करनेके लिए हिन्दूधर्मके संशोधनका कुछ प्रयोजन नहीं जान पड़ता । बाल्यविवाह हिन्दूसमाजसे एक तरह उठ गया है । थोड़ी अवस्थामें, अर्थात् कन्याकी तेरहसे लेकर चौदह वर्षतक की अवस्थामें, और पुत्रकी सोलहसे लेकर अठारह वर्षतककी अव (१) मनुसंहिता ३।१-४ देखो। (२) मनुसंहिता ९१८९-९४ देखो। ( ३ ) मनुसंहिता ९।८९-९४ देखो।

Loading...

Page Navigation
1 ... 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403