Book Title: Gurumurti Pratishtha Vidhi Author(s): Mangalsagar Publisher: Jinduttsuri Gyanbhandar View full book textPage 4
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir IN 2ccccceeeeccaecreen उपरोक्त गाथाओ से विदित होता है कि पूर्व के प्रभावक आचार्योंने जैनधर्म की महान् सेवा की है, परंपरागत प्रभाव01 कोने भी राजा, महाराजा, मुगल बादशाह, मंत्री, महामंत्री, सेनापति आदि पुरुषों को प्रभावित कर जैनशासन की प्रभावना की, इतना ही नहि बल्कि जैनधर्मी भी बनाये । अतः उन्हों के गुणस्मरणार्थ गुरुमूर्तियों का निर्माण हजारों वर्षों से भारतवर्ष में होता आ रहा है, उसी प्रकार विधिग्रन्थो का भी निर्माण हुआ। प्रस्तुत, ग्रन्थ उन में से एक है । सूरिसम्राट् के परंपर पट्टधर, आचार्य श्री १००८ श्री नन्दनसूरिजी के उदार कृपा से प्रतिष्ठा प्रन्थ की प्राचीन अर्वाचीन प्रति उपलब्ध हुयी है, अतः आभार मानते है। प्रकृत ग्रन्थ में अठारह अभिषेक काव्य नवीन सम्मिलित किये गये है। इस ग्रन्थ का संशोधन करने का प्रयास उपरोक्त सूरीश्वरजी महाराज ने किया है। तथापि अशुद्धि रह गइ हो तो पाठकगण उसको सुधार कर पढे। पूज्य गुरुवयं १०८ श्री उपाध्याय मुनि सुखसागरजी महाराज के उपदेश द्वारा ग्रन्थ प्रकाशनार्थ सहायता की है अतः वे श्रुतभक्ति के कारण धन्यवाद के पात्र है। CPCRPopeececoccaer. पालीताणा सं. २०१७ शुभाकाक्षी, मुनि मंगलसागर ॥४ ॥ For Private and Personal Use OnlyPage Navigation
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