Book Title: Gurumurti Pratishtha Vidhi
Author(s): Mangalsagar
Publisher: Jinduttsuri Gyanbhandar

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Page 3
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir निवेदनपावयणी-धम्मकही-वाई-नेमित्तिो -तवस्सी य । विज्जा-सिद्धो य कवी अठेव पभावगा भणिया । (प्रव० सा०) आठ प्रभावक प्रवचनना कह्या, पावयणी धुरि जाण । वर्तमानश्रुतना जे अर्थनो, पार लहे गुणखाण ॥ धन धन शासन मंडन मुनिवरा ॥१॥ धर्मकथी ते बीजो जाणीए, नंदिषेण परे जेह । निज उपदेशे रे रंजे लोकने, भंजे हृदय संदेह ।। ध० ॥२॥ वादी त्रीमो रे तर्क निपुण भणी, मल्लवादी परे जेह । राजद्वारे जय कमला वरे, गाजतो जिम मेह ।। ध० ॥३॥ भद्रबाहु परे जेह निमित्त कहे, परम तजीपण काज । तेह निमित्ती रे चोथो जाणीए, श्री जिनशासन राज ।। ध० ॥४॥ तप गुण ओपे रे रोपे धर्मने, गोपे नवि जिन आण । आभव लोपे रे नवि कोपे कदा, पंचम तपसी सुजाण ॥ ३० ॥५॥ छट्ठो विद्या रे मंत्रतणो बळी, जिम श्री वयर मुणींद । सिद्ध सातमो रे अंजनयोगथी, जिम कालिक मुनिचंद ॥ ३० ॥६॥ काव्य सुधारस मधुर अर्थ भर्या, धर्महेतु करे जेह । सिद्धसेन परे राजा रीझवे, अट्ठम वर कवि तेह ।। ध० ॥७॥ जब नवि होवे प्रभावक एहवा, तब विधिपूर्व अनेक । जात्रा पूजादिक करणी करे, तेह प्रभावक छेक ॥ १०॥ ८॥ (उपाध्यायजी यशोविजयजी समकित ६७ बोल सज्झाय) CrPCCORPCOCCORDCORDC * अइसेस इडिट-धम्मकहि-वादि-आयरिय-खवग-णेमित्ती। विज्जा-राया गण सं-मया य तित्यं पभावेति ॥ नि० चू० ॥ For Private and Personal Use Only

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