Book Title: Gaudavaho
Author(s): Vakpatiraj, Narhari Govind Suru, P L Vaidya, A N Upadhye, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
View full book text ________________
304
पहुकित्तिणिसमणूसुअ पहुदंसणरसपसरिअ पहुधम्मबंधणे संठिअस्स पालभरिअमूला पांआलोअरमग्गम्मि
पाऊण व उवहारा 'पालिअभूरओ हि
पाणमइआओ जाणं
पावइ उअयाअंबो
पार्वति कुलालउलाइँ
पावंति वलिअवित्थअ
पासम्म अहंकारी
पासम्म आवा
पासल्लिआण जे पडि
पासोसरंततलमग्ग
पिअपरिरंभुम्मूलिअ पियहुतं जाणविलास
पीडिअप ओह रोगाढ
पीणत्तणदरपरिणाम
पीलिअतमालपल्लव
पुरओ पुरओ तुम्हा पुरओ सिरी पिय
पुरुमिल्लदिसागअ
पुरुहू आइपढमो
पुहवीवो अहे आहिसेअविअलिअ
पूइज्जसि भिण्णभुआ
पेच्छह विवरीअमिमं
पेच्छति जाओ चलणे
पेच्छंति सुरदइन्चा पेरंतलूणकमला पेरं हरिअकोमल ती उत्तंग
Jain Education International
Gaüdavaho
1187 परंतेसु दराबद्ध 1055 पंकभरिओअरुब्भिण्ण
1015 पंडुतएण करअल
448
फ
852
300
632
J.
1117
266
232
368
770
1159
680
365
215
984
1097
482
1072
311
फलणिग्गमपडिपेल्लिअ
फलबंधविरलहरिआ
फललंभमुइअडिभा
503 फलिहच्छोअरदीसंत
1027 फुट्टंति पाअवाणं 79 फुडिअघणवडलपाडल
106
फलसारणलिणिगहणा फलिक्खावलिकज्जम्मि
330
864
760
1019
523
फुरइ अ फुडो अभावस्स
व
बंदीकअमहिसासुर
बरहीण ताण रसिअं बलसंखोहुक्खअरेणु बहलत्तणकुहरूसfer
बहुओ सामण्ण
बहुकुहराविलकडअ
बहुलपओसा बद्ध
बहुसो घडंतविडंत बहुसो बहुतविसहर
बहुसो भग्गअरमण
बाढं लीढूसघणत्तणेण
बालत्तणम्मि हरिणो
बालासु तासु णव
बाहि गआण जस्स
बाहुसिहरेसु दीसइ
बिलवलयमुहुव्वेल्लं त
भ
792 भमरावलिओ भइरवि 457 भमिअं पलयपओसे
For Private & Personal Use Only
1112
343
485
788,
P
596
607
378
4
750
1023
174
1005
285
349
432
1107
75
282
335
463
348
1160
536
21
772
281
249
474
287
45
www.jainelibrary.org
Loading... Page Navigation 1 ... 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634 635 636 637 638