Book Title: Gaudavaho
Author(s): Vakpatiraj, Narhari Govind Suru, P L Vaidya, A N Upadhye, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 600
________________ लिज्जतसमुण्णअ किलिणवत्तं बारह अधरणिकणा धाराहिसित्तणवकंदलाण धारेइ जलहरोहुर धावति ससल्लभडंग धीहि हिअयणहि अमअपंककणुक्कर अडाअइ गिम्हाणिल पण जामिणीसुवि पक्खउडकूडपुंजिअ पतरालपरिअल पच्चक्खभावतक्खण पच्चट्ठिआअवत्तण फज्जलइ धूममंडल पडवासपंसुधूसर बिद्धं णवर तुमे डिमामग्गा सिरससि पडिरोहिकण्णपल्लव पडसंतरयासणा पsिहाइ जलणजाला पsिहाइ वूढजोहो वि पढेमरआरंभरसाण वि पढमविमूढच्छाओ पढ महरालिंगण पढमासारे इह तत्त पढमुत्थंघणघोला पढमंचिअ धवलकओ पढमं छणमग्गिअवइ पढमं ण गुणागुण पण अजण रक्खणंतरिअ पुणइअणत्थं आमुअइ ० Jain Education International Appendix I 1193 पणईसु गुणमणोरह पणमह कालिंदीसलिल 410 184 647 805 पत्थारोसणतरलिअ 435 पत्थिवघरेसु गुणिणो 846 पम्हंतरलक्खिअपंडु 698 पयइपरिसुक्ककाया परगुणपरिहारपरंपराएँ 390 502 154 225 312 1083 पणमह बलस्स हुंकार पणमह हेडिअविअर्ड परमत्थपाविअगुणा परिअत्तसरलकुंतल' परिउट्ठे साणणिरूसुएण परिकविसबिदुमाला परिंग अपरगुणसार परिगलिअपंडुतारा परिगंडत्थलमासवण° 169 परिघोलइ सिढिलिअ 836 परिणइकुंडलिअकरा 238 परिणामसोसलहुआ 1010 परिरुज्झइ अमरिस 1134 परिरंभणचक्कलिअं 391 परिलूणपेहुणस्स वि 180 परिलबिज्जइ घोलंत 436 परिवारदुज्जणाई 1153 परिसडिअवेणुदलरंग 453 परिसिढिलविअडमूला 301 246 44 परिहोअसहा णववहु क 649 फ्लयं वा कालि ण 850 पल्लवसिहाओ इह 1 पल्हत्थइ तिमिरमहा 784 पविलीण कुसूलट्ठाण 944 पसरंति वलंतोअहि पहरइ कह णु अणंगो पहरिसमिसेण बाहो For Private & Personal Use Only 303 728 $2 24 5 35 876 1170 329 71 922 205 427 785 891 1181 779 731 433 612 434 773 141 499 867 614 1025 920 297 604 1098 666 1034 996 941 www.jainelibrary.org

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