Book Title: Gaudavaho
Author(s): Vakpatiraj, Narhari Govind Suru, P L Vaidya, A N Upadhye, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 605
________________ 308 समगुणदोसा दोसेक्क° समजाइ त्तणसंभाविओ समभावपअत्तूसास समरे धारागोअर° समरेसु खग्गधारा° समहिअसंज्झाराआ सरसट्ठिदंड लोण सरसणहराइमग्गेहिं सरसपडिबोहलंघिअ सरसमअतंबिमाहअ सरहससंचारतरं सरिआओ अणेअ सरिआण णिरंतरमिलिअ सरिआण तरंगिअपंक' सविमो अणज्जुणमिमं सव्वंगं विणिवेसो सव्वत्तो हारमऊह सव्वत्थामोणमिअं संवेल्लिऊण एक्कं सव्वोच्चिअ सगुणु ससिएहिंचिअ लोओ ससिणो समोसरांती ससिमिव णवोइअं संसेविऊण दोसे सहइ जलद्दासंदाण सहइ गरिद परिणओ सहइ थणवट्ठसंठिअ° सहीपसत्तकुररा सहिखधट्ठिअदाहिण सा चडुला कह णु गुणु सा अइ चउमुहास सा जअइ हरसिरत्थम्मि सा जयइ मई गरुआ साणंदरोहिणीबाहु Jain Education International Gaüḍavaho 964 सामण्णसुंदरीणं 1195 1163 928 212 402 328 सावअपअवीभिण्णा' 1150 सासअमिअंकमणि सामण्णाई वि णाम सामाअइ सेअलआ सामाअंते वि मही सायं मिलंति कम सायं समारुआसार 187 सासुक्खअरयलहु 1140 साहासु बंधपरिवेस 833 साहिज्जइ गउडवहो 950 साहीणसज्जणा वि हु 1078 साही गमुहसहस्सो 525 सिढिलपसारिअवक्खा 240 सिरिथणणिवेसमग्गा 1000 सिसिरच्छासु चिरं 1060 सिसिरम्मि विरलकुसुमे 1001 सिहरणपहुत्तगअणा 1081 सीलेण जइ वि विमलो सीसइ व जस्स तारा सीसम्मि कओ महिसस्स सुअणत्तणेण घेप्पइ सुअणसहावे वि गओ सुअणाअंति खला वि हु 163 सुकइ. भेसु जाण 216 सुट्ठ वि परिहीणगुणो 835 सुत्तणिवेसं पिव देंति 531 सुमईण सुचरिआण 204 सुरहिमिह गंधमा 933 सुलहोवहाररुहिर 47 सुलहं हि गुणाहाणं 59 सुसिरोसरिअसकद्दम L सुहडाअड्ढिअकोअंड 196 सुहसंगगारवेच्चिअ 881 940 1178 751 887 For Private & Personal Use Only ० 959 713. 740 506 1104 359 613 186 1144 669 1074 917 710 128 28 395 592 114 951 1064 324 882 G. 886 I. 888 268 873 516 310 859 518 243 936 www.jainelibrary.org

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