Book Title: Gaudavaho
Author(s): Vakpatiraj, Narhari Govind Suru, P L Vaidya, A N Upadhye, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 614
________________ Appendix IV 317 इत्थं नाभिविनिर्गतर्न सशिरःकम्पाद्भुतं वेधसा यस्यान्तश्च बहिश्च दृष्टमखिलं त्रैलोक्यमव्यात् स वः॥ वाक्पतिराजस्य ( वाचस्पतेः) । P. 27 उत्प्लुत्य दूरं परिधूय पक्षावधौ निरीक्ष्य क्षणबद्धलक्ष्यः। मध्येजलं बुड्डुति दत्तझम्पः समत्स्यमुत्सर्पति मत्स्यरङ्कः॥ वाक्पतिराजस्य । P 207. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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