Book Title: Gadyachintamani Author(s): Vadibhsinhsuri, Pannalal Jain Publisher: Bharatiya Gyanpith View full book textPage 9
________________ गद्य चिन्तामणिः घटना काष्ठांगारिक और भी अधिक कुपित हुआ। अबकी बार उसने बहुत-सी सेना भेजी । परन्तु दयालु जीवन्धरकुमारने निरपराध सैनिकोंको मारना अच्छा नहीं समझा, इसलिए सुदर्शन यक्षका स्मरण कर सब उपद्रव शान्त कर दिया । सुदर्शन यक्ष उन्हें विजयगिरि हाथीपर बैठाकर अपने घर ले गया । जीवन्धरकुमारको यक्षके साथ जानेका समाचार गन्धर्वदत्ताको छोड़कर किसीको विदित नहीं था इसलिए सब लोग बहुत दुःखी हुए परन्तु गर्भदत्ताने सबको सान्त्वना देकर स्वस्थ कर दिया । जीवन्धरकुमार यक्षके घर में बहुत दिन तक सुखसे रहे । तदनन्तर चेष्टाओं द्वारा उन्होंने यक्षसे अपने जानेकी इच्छा प्रकट को । उनका अभिप्राय जान यक्षने उन्हें कान्तिसे देदीप्यमान इच्छित कार्यको सिद्ध करनेवाली और मनचाहा रूप बना देनेवाली एक अंगूठी देकर पर्वतसे नीचे उतार दिया तथा सब मार्ग समझा दिया | L ८ धनपति नामका राजा था और तिलोएक बार वनविहार के समय पद्मोसमा । उपचार करनेपर भी जब अच्छी नहीं राज्य और वही कन्या देनेकी घोषणा कुछ दूर चलने पर जोवन्धर चन्द्राभनगर पहुँचे। वहाँ तमा नामकी उसकी स्त्री थी। दोनोंके पद्मोत्तमा नामको पुत्री थी। को सौपने काट खाया । सर्प विष पद्योत्तमा मूच्छित हो गयी हुई तो राजा धनपति ने उसे अच्छी कर देनेवालेके लिए आधा करायी । राजा धनपतिके सेवकों के आग्रहसे जीबन्धरकुमार उसके घर गये और यक्षका स्मरण कर मन्त्रद्वारा उन्होंने पद्मोत्तमका विष दूर कर दिया। राजा बहुत सन्तुष्ट हुआ और उसने जीवन्धर के लिए अपना आधा राज्य तथा पद्मोतमा कन्या दे दी। राजा धनपतिके लोकपाल आदि बत्तीस पुत्र थे । उन सबके स्नेह वश जीवन्धर वहाँ कुछ समय तक सुखसे रहे । तदनन्तर चुपचाप बहाँसे चलकर क्षेम देशके क्षेमनगरमें पहुँचे । वहाँके बाह्य उद्यान में सहस्रकूट जिनालय देखकर बहुत प्रसन्न हुए । उनके पहुँचने पर चम्पा फूल उठा, कोकिलाएँ बोलने लगीं, सूखा सरोबर भर गया तथा मन्दिर के द्वारके कपाट अपने आप खुल गये । कुमारने सरोवरमें स्नान कर भक्तिपूर्वक जिनेन्द्र देवकी पूजा को और वहाँ के सुभद्र सेठकी निर्वृति नामक स्त्रीसे उत्पन्न क्षेमसुन्दरी कन्या के साथ नगरमें रहता विवाह किया। एक दिन प्रसन्न होकर सुभद्र सेठने जीवन्धरसे कहा कि जब में पहले राजपुर था तब राजा सत्यम्वरने मुझे यह धनुष और ये बाण दिये थे, ये आपके ही योग्य हैं अतः आप ही ग्रहण कीजिए इस प्रकार कहकर वह धनुष और बाण दे दिये। जीवन्धरकुमार धनुष बाण लेकर बहुत सन्तुष्ट हुए । यहाँपर उनकी प्रथम स्त्री --- गन्धर्वदत्ता अपनी विद्याके द्वारा उनके पास गयी और उन्हें सुखसे बैठा देख किसीके जाने बिना वापस आ गयी । वहाँ से चलकर जीवन्धरकुमार 'सुजन देशके हेमाभनगर पहुँचे । वहाँका राजा दृढ़मित्र था और उसकी स्त्रीका नाम नलिया था। दोनोंके एक हेमाभा नामकी कन्या थी । हेमाभाके जन्मके समय किसी निमित्तज्ञानी ने बताया था कि मनोहर नामक वनको आयुधशाला में जिसका बाण लक्ष्य स्थान से लोट ४. पाचन्तामणि आदिमें विष दूर करनेवाली, मनचाहा रूप बना देनेवाली और उत्कृष्ट मोहक संगीत करानेवाली तीन विद्याएँ दीं, ऐसा उल्लेख है । २. गद्यचिन्तामणि आदिमें चन्द्रामनगर पहुँचने के पूर्व वनमें दावानलसे झुलसते हुए हाथियों और यक्षके स्मरणसे आकस्मिक वृष्टि-द्वारा उनका उपद्रव शान्त होनेका वर्णन है । ३. गद्य चिन्तामणि आदिमें राजाका नाम छोकपाळ दिया है । ४. गद्यचिन्तामणि आदिमें कन्याका नाम पद्मा दिया है । ५. गद्यचिन्तामणि आदिमें कन्याका नाम क्षेमत्र है। क्षेमनगर पहुँचने के पूर्व गद्यचिन्तामणि आदिमें एक तपोवन में तासियोंको समीचीन धर्मका उपदेश देनेका वर्णन है । ६. गद्यचिन्तामणि आदिमें धनुष-बाण देने तथा गन्धर्वदत्ता के पहुँचनेका कोई उल्लेख नहीं है । ७. गद्यचिन्तामणि आदिमें हेमाभनगर पहुँचने के पूर्व अटवीमें एक विद्याधरीकी २. गद्यचिन्तामणि कामुकताका मी वर्णन है । ८. गद्यचिन्तामणि आदिमें मध्य देशका उल्लेख है । आदि में रानीका नाम नकिनी लिखा है ।Page Navigation
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