Book Title: Gadyachintamani Author(s): Vadibhsinhsuri, Pannalal Jain Publisher: Bharatiya Gyanpith View full book textPage 8
________________ प्रस्तावना समय राजपरीके उद्यान में सागरसेन जिनराज पधारे थे उनके केवलज्ञानके उत्सवमें वह अपने पिताके साथ आया था । आप भी वहां पधारे थे इसलिए उसे देख आपका उसके साथ प्रेम हो गया था। वही जिनदत्त धन कमाने के लिए रत्नद्वीप आवेगा उसीसे हमारे इष्ट कार्यको सिद्धि होगी। इस तरह कितने ही दिन बीत जानेपर जिनदत्त रत्नद्वीप आया। राजा गरुड़वेगने उसका खूब सत्कार किया और उसे सब बात समझाकर गन्धर्वदत्ता सौंप दी। जिनदत्तने भी राजपुरी नगरोमें वापस आकर उसके मनोहर नामक उद्यान में वीणा स्वयंवरकी घोषणा करायी। स्वयंवर में जीवन्धरकुमारने गन्धर्वदत्ताकी मृघोपा नामक वीणा लेकर उसे इस तरह बजाया कि वह अपने आपको पराजित समझने लगी तथा उसी क्षण उसने जीवन्धरके गले में वरमाला डाल दी। इस घटनासे काष्टांगारिकका पुत्र कालांगारिक बहुत क्षुभित हा। वह गन्धर्वदत्ताको हरण करनेका उद्यम करने लगा, परन्तु बलवान् जीवन्धरकुमारने उसे शीन ही परास्त कर दिया। गन्धर्वदत्ताके पिता गरुडवेगने अनेक विद्याधरोंके साथ आकर सबको शान्त कर दिया और विधिपूर्वक गन्धर्वदत्ताका जोवन्धरकुमारके साथ पाणिग्रहण करा दिया। तदनन्तर इसी राजपुरी नगरी में एक वैश्रवणदत्त नामक सेठ रहता था उसकी आम्रमंजरी नामक स्त्रीसे सुरमंजरी नामकी कन्या हुई थी। उस सुरमंजरीकी एक श्यामलता नामको दासी थी, वसन्तोत्सबके समय श्यामलता, सुरमंजरीके साथ उद्यानमें आयी थी। वह अपनी स्वामिनीका चन्द्रोदय नामक चर्ण लिये थी और उसकी प्रशंसा लोगोंमें करती फिरतो थी। उसी नगरी एक कुमारदत्त सेठ रहता था, उसकी विमला नामक स्त्रीसे गुणमाला नामक पुत्री हुई थी। गुणमालाको एक विद्युल्लता नामको दासी यो। वह अपनी स्वामिनोका सूर्योदय नामका चूर्ण लिये थी और उसकी प्रशंसा लोगोंमें करती फिरती थी। चूर्णकी उत्कृष्टताको लेकर दोनों कन्याओं में विवाद चल पड़ा। उस वसन्तोत्सवमें जोवन्धरकुमार भो अपने मित्रोंके साथ गये हुए थे। जब चूर्णको परीक्षाके लिए उनसे पूछा गया तब उन्होंने सुरमंजरीके चूर्ण को उत्कृष्ट सिद्ध कर बता दिया। नगरके लोग वसन्तोत्सवमें लीन थे। उसी समय कुछ दुष्ट बालकोंने चपलतावश एक कुत्तको मारना शुरू किया।' भयसे व्याकुल होकर वह भागा और एक कुण्डमें गिरकर मरणोन्मुख हो गया । जोवन्धरकुमारने यह देख उसे अपने नौकरोंसे बाहर निकलवाया और उसे पंचनमस्कार मन्त्र सुनाया जिसके प्रभावसे वह चन्द्रोदय पर्वतपर सुदर्शन यक्ष हुआ। पूर्वभवका स्मरण कर वह जीवन्धरके पास आया और उनको स्तुति करने लगा। अन्तमें वह जीवन्धरकूमारसे यह कहकर अपने स्थानपर चला गया कि दुःख और मुम्पम मेरा स्मरण करना । जब सब लोग क्रीड़ा कर वनसे लौट रहे थे तब काष्ठांगारिक अशनिघोष नामक हाथीने कूपित होकर जनतामें आतंक उत्पन्न कर दिया। सुरमंजरी उसकी चपेट में आनेवाली ही थी कि जीवन्वरकूमारने पर पहुंचकर हाथीको मद रहित कर दिया। इस घटनासे सुरमंजरीका जीवन्धरके प्रति अनुराग बढ़ गया और उसके माता-पिताने जीवन्धरके साथ उसका विवाह कर दिया। जीवन्धरकुमारका सुयश सब ओर फैलने लगा कि उसे काष्टांगारिक मन-ही-मन कुपित रहने लगा। 'इसने हमारे हायोको बाधा पहुंचायो है' यह बहाना लेकर काष्टांगारिकने अपने चण्डदण्ड नामक मुख्य रक्षकको आदेश दिया कि इसे शीघ्र ही यमराजके घर भेज दो। आज्ञानुसार चण्डदण्ड अपनी सेना लेकर जीवन्धरको और दौड़ा परन्तु ये पहलेसे ही सावधान थे अतः उन्होंने उसे पराजित कर भगा दिया। इस 1. गद्यचिन्तामणिमें चर्चा है कि जीवन्धरकुमारने गुणमालाके चूर्णको उत्कृष्ट सिद्ध किया था, इसलिए सुरमंजरी नाराज होकर बिना स्नान किये ही घर वापस चली गयी थी। १. गद्यचिन्तामणि आदिमें चर्चा है कि भोजनको सबने अपराधसे कुपित ब्राह्मणोंने उस कुत्तेको दण्ई तथा पत्थर आदिसे इतना मारा कि वह मरणोन्मख हो गया। ३. गधचिन्तामणि आदिमें यहाँ मुरमंजरीके साथ विवाह न कर गुणमालाके साथ विवाह करानेका उहालेख है।Page Navigation
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