Book Title: Gadyachintamani Author(s): Vadibhsinhsuri, Pannalal Jain Publisher: Bharatiya Gyanpith View full book textPage 6
________________ प्रस्तावना विजया रानी उसी गरुडयन्त्रमें बैठकर दण्डकवनमें स्थित तापसियोंके आश्रम में चली गयी' और वो अपना परिचय न देकर तापसीके वेधमें रहने लगी। यक्षो बीच-बीच में जाकर उसका शोक दूर करती रहती थी। 'राजा सत्यन्धरको भामारति और अनंगपताका नामकी दो छोटो स्त्रियाँ और थीं। उन दोनोंने मघर और बकुल नामके दो पुत्र प्राप्त किये । इन दोनों ही रानियोंने धर्मका स्वरूप सुन श्रावको व्रत धारण कर लिये थे इसलिए ये दोनों ही भाई गन्धोत्कट के यहां ही पालन-पोपणको प्राप्त हो रहे थे। उसी नगरमें विजयमति, सागर, धनपाल और मतिसागर नामको चार थावक और थे जो कि अनुक्रमसे राजाके मेनापति, परोहित, श्रेष्ठी और मन्त्री थे। इन चारोंको स्थियोंके माम अनुक्रमसे जयायती, श्रीमती, श्रीदत्ता और अनुपमा थे। इनसे क्रमसे देवसेन, बुद्धिपेण, वरदत्त और मधुमुख नामके पुत्र उत्पन्न हुए थे। मधुमुख आदिको लेकर वे छहों पुत्र जीवन्धर कुमारके साथ ही वृद्धिको प्राप्त हुए थे । इधर, गन्धोत्कटको स्त्री सुनन्दाने भी नन्दाढ्य नामका पुत्र उत्पन्न किया । एक दिन जीवन्धरकुमार नगरके बाहर अपने साथियोंके साथ गोलो बेटा आदि खेल रहे थे कि एतने में एक तपस्वीने आकर पूछा कि यहाँसे गाँव कितनी दूर है ? तपस्वीका प्रश्न सुन जोबन्धरकुमारने उत्तर दिया कि आप वृद्ध होकर भी आसानी है ? लडकी कोमात योन ही ६० लेगा कि नगर पास हो है। जीवन्धरको उत्तर देनेको प्रणालीसे तपस्वी बहुत प्रसन्न हुआ और समझ गया कि यह कोई राजवंशका उत्तम बालक है। फिर भी परीक्षार्थ उसने कहा कि तुम मुझे भोजन दो। जीवन्धरकुमारने उसे 'भोजन देना स्वीकृत कर लिया और साथ लेकर घर आनेपर अपने पिता गन्धोत्कटसे कहा कि मैंने उसे भोजन देना स्वीकार किया है फिर आपको जो आज्ञा हो । पुत्रको विनम्रतासे गन्धोत्कट बहुत प्रसन्न हुआ। उसने कहा कि त भोजन कर, यह तपस्वी मेरे साथ भोजन कर लेगा। जीवन्धर भोजनके लिए भोजनशालामें बैठे। भोजन गरम था इसलिए रोने लगे। उन्हें रोते देख तपस्वीने कहा कि त अच्छा बालक होकर भी क्यों रोता है ? इसके उत्तरमें जीवन्धरकुमारने रोनेके अनेक गुण बता दिये । जिसे सुन हास्य गूंज उठा और प्रसन्नताका वातावरण छा गया। जब गन्धोत्कट भोजन कर चुका तब शान्तिसे बैठे हुए तपस्वोने कहा कि यह बालक बहुत होनहार है। इसे पढाना चाहता हैं। गधोखाटने कहा कि मैं धावक है इसलिए अन्य लिगियोंको नमस्कार नहीं करता। नमस्कारके अभावमें आपको बुरा लगेगा इसलिए आपसे पढ़ाईका काम नहीं हो सकेगा। इसके उत्तर तपस्थीने अपना परिचय दिया कि मैं सिंहपुरका राजा था, आर्यवर्मा मेरा नाम था, वरीनन्दी मुनिसे 1. गद्यचिन्तामणिमें चर्चा है कि चम्पकमाला दासीका वेष रखनेवाली यक्षीने रानी के सामने माईके घर चले जानेका प्रस्ताव रम्या पर सनीने विपत्तिके समय स्वयं किसीक यहाँ जामा स्वीकृत नहीं किया । तब वह उसे दण्डकवनमें भेज अायो। २. यह चर्चा गद्यचिन्तामणि आदिमें नहीं है सिफ बुद्धिपणका उल्लेख सुरमंजरीके प्रकरणमें अवश्य आया है। ३. गन्धोत्कट सेठ बढ़ा बुद्धिमान् और दादी या । उसने सोचा कि यदि काष्टांगारिकमे अलग रहते हैं तो यह राजपुत्र जीवन्धरको कभी मी कुदृष्टिम ताइ सकता है इसलिए ऊपरमे वह उससं मिल गया और मिलकर उससे खूब धन प्राप्त किया। उसने सोचा कि राजपुत्रको रक्षाक लिए यदि अलगसे सेना रखी जायेगी तो भेद जल्दी प्रकट हो जायेगा इसलिए उसने काांगारिककी आज्ञासे उस दिन नगरमें उत्पन्न हए सब बालकों को अपने घर त्रुला किया और सबका पालन अपने ही घर कराने लगा। उसका ख्याल था कि बड़े होनेपर ये जीवन्धरक, अमिन्न मित्र होंगे और वही एक छोटी-मोटी सेनाका काम देगी।""गचिन्तामणिमें इसका भरा सकत है। ४. इस घटनाका गचिन्तामणिकारने कोई उल्लेख नहीं किया है। हाँ, जीवन्धरचम्पकारने किया है और सुन्दरता के साथ किया है। ५. इस विनोद घटनाका भी गद्यचिन्तामणिमें कोई वर्णन नहीं है किन्तु जीवघर चम्पमें बड़ी सरसताके साथ यह वर्णन किया गया है।Page Navigation
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