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गद्यचिन्तामणिः
लूटने लगे । नगरवासी लोगोंकी चिल्लाहट सुन जीवन्धर कुमारने उन भीलोंका सामना किया तथा सबको परास्त कर दिया । अन्तम मधुर आदि मित्रोंने अपने नामांकित बाण चलाकर जीवन्धरको अपना परिचय दिया। सबका सुखद-मिलन हुआ।
तदनन्तर कुमारको लेकर सब राजपुरीको ओर चले, बीचमें उसी दण्डक बनके तपोवनमें ठहरे । वहाँ चिरकालसे बिछुड़ो माताके साथ जीवन्धरका मिलन हुआ । सुदर्शन यक्षने आकर बड़ा उत्सव किया। माताने आशीर्वाद देते हुए जीवन्धरको बताया कि बेटा ! काधागारिकने तर पिताको मारकर तेरा राज्य छोन लिया है उसे अवश्य प्राप्त कर । जीवन्धर माताको सान्त्वना दे राजपुर नगर वापस आ गये। वहां उन्होंने अपने आनेकी खबर नहीं होने दी । राजपुर नगरमें उन्होंने सागरदत्त सेठको कमला नामक स्त्रोसे उत्पन्न विमला नामक पुत्रीको प्राप्त किया और उसके बाद वृद्धका रूप रखकर गुणमालाको चकमा दिया और उसके साथ विवाह किया। इस तरह कुछ दिन तक राजपुर नगरमें अज्ञातवास कर किसी शुभ दिन उन्होंने विजयगिरि नामक हाथीपर सवार हो बड़ी धूमधामरो गन्धोत्कटके घर प्रवेश किया।
इस घटनासे काष्ठांगारिकको बहुत बुरा लगा परन्तु उसके मन्त्रियोंने उसे शान्त कर दिया । विदेह देशके विदेह नामक नगरमें राजा गोपेन्द्र रहते थे। उनको स्त्रोका नाम पथिवीसुन्दरी था और उन दोनोंके एक रत्नवती नामको कन्या यो। उसकी प्रतिज्ञा थी कि जो चन्द्रकबेध चतुर होगा मैं उसीके साथ विवाह करूंगी अन्य पुरुषके साथ नहीं । निदान, राजा गोपेन्द्र कन्याको लेकर राजपुर आया और वहां उसने उसका स्वयंवर रचा। स्वयंवरमें जीवन्धर कुमारने चन्द्रकबेधको वेध दिया था जिससे रत्नवतीने उनके गले में वरमाला डाल दी। इस घटनासे काष्ठांगारिक बहुत कुपित हुआ। उसने युद्धके द्वारा रत्नवतीको छोननेकी योजना बनायो । जब जीवधर कुमारको इसका बोष हआ तब उन्होंने सत्यधर महाराजके सब सामन्तोंके पास दूत भेजकर सब हाल विदित कराया कि 'मैं राजा सत्यन्धरको विजयारानीसे उत्पन्न पुत्र हूँ। काष्ठांगारिकको हमारे पिताने मन्त्री बनाया परन्तु इसने उन्हें भी मारकर राज्य प्राप्त कर लिया। आप लोग इस कृतघ्नको अवश्य नष्ट करें।
जीवन्धर कुमारका सन्देश पाकर सब सामन्त इनकी बोर आ मिले। अन्तमें युद्ध कर जोवन्धरने काष्ठांगारको मारकर अपना राज्य प्राप्त कर लिया। सुदर्शन यक्षने सब लोगोंके साथ मिलकर जीवन्धरका राज्याभिषेक किया । गन्धोत्कट राज सेठ हए। माता विजया और आठों रानियों सब एकत्रित हई। सबका सुखसे समय व्यतीत होने लगा।
एक बार जोवन्धर कुमारने सुरमलय नामक उद्यान में वरधर्म नामक मुनिराजसे धर्मका स्वरूप सुना और व्रत लेकर सम्यग्दर्शनको निर्मल किया। नन्दाहच आदि भाइयोंने भी यथाशक्य व्रत आदि ग्रहण किये। तदनन्तर किसी एक दिन अपने अशोक वनमें गये। वहां लड़ते हुए दो बन्दरोंके झुण्डोंको देखकर. संसारसे विरक्त हो गये। वहीं उन्होंने प्रशान्तवंक नामक मुनिराजसे अपने पूर्व भव सुने। उसी समय सुरमलय उद्यानमें भगवान् महावीरका समवसरण आया सुन वैभवके साथ वहाँ गये और गन्धर्वदत्ताके पुत्र वसुन्धर
मचिन्तामणि भादिमें गायोंके लूटनेका वर्णन है । २. गधचिन्तामणि आदिमें यहाँ सुरमंजरीके साथ विवाह होनेकी चर्चा है। ३. गद्यचिन्तामणि आदिमें उल्लेख है कि विदेह देशमें राजा गोविन्द रहते थे, उन की बबुति रानीसे उत्पन्न लक्ष्मणा नामकी पुत्री थी। गोविन्द महाराज जीवन्धर कुमारके मामा थे अतः काष्टांगारके ऊपर चढ़ाई करने के पूर्व वे विचार-विमर्श करने के लिए उनके पास गये थे। उसी समय काष्टांगारका एक पन भी उन्हें राजपुरी बुलानेके विषय में गया था । फलस्वरूप राजा गोविन्द पूरी तैयारीके साथ राजपुरोकी ओर चके। उनके साथ उनकी कक्ष्मणा नामक पुत्री मी थी। राजपुरी में उसका स्वयंवर हुआ था और उसने चन्द्रकवेधक बेधनेपर जीवन्धरको अपना पति बनाया था। ४. गवचिन्तामणि आदिमें गन्धर्वदत्ताके पुत्र का नाम सम्पन्धर लिखा है।