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सह-अस्तित्व और समन्वय
___ मुझे नाम से कोई मोह नहीं है । मुझे आकार से कोई मोह नहीं है। जिस आत्मा के भव-बीज के उत्पादक राग-द्वेष समाप्त हो चुके हैं, क्षीण हो चुके हैं, फिर चाहे वह ब्रह्मा हो, विष्णु हो, महादेव हो या जिन हो, उन सबको मेरा नमस्कार ।।
बात सारी समन्वय में बदल गई । यह हमारी समन्वय की चेतना जागे। हम भेद में से अभेद को खोज सकें, विरोध में आविरोध को खोज सकें और समन्वय के द्वारा टकराव की स्थिति को टाल सकें, सह-अस्तित्व और समन्वय का विकास कर सकें तो समाज सुन्दर होगा, स्वस्थ होगा और हमारा सामाजिक स्वास्थ्य विकसित होगा । इसके बिना सामाजिक स्वास्थ्य की कल्पना नहीं की जा सकती। जो लोग प्रशासन में जाने वाले हैं, प्रशासन के क्षेत्र में जिन्हें काम करना है। उनके लिए बहुत आवश्यक है कि वे सहअस्तित्व और समन्वय की चेतना को जागृत करने का अभ्यास करें।
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