Book Title: Ekla Chalo Re
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Tulsi Adhyatma Nidam Prakashan

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Page 312
________________ तनाव क्यों ? निवारण कैसे ? ज्यादा हमें प्रभावित करने वाली तीन ग्रन्थियां हैं-एक पिच्यूटरी और दो एड्रीनल । उनके स्राव हमारे व्यवहार और आचरण को प्रभावित करते हैं। जितना भय, जितनी वृत्तियां, अहंकार, लोभ, उत्तेजना, सारे आवेग आवेश, वे पैदा होते हैं एड्रीनल ग्लैण्ड के द्वारा । काम-वासना पैदा होती है गोनार्ड ग्लैण्ड के द्वारा, यानी नाभि के आस-पास । यहां हमारी सारी वृत्तियां जन्म लेती हैं । और उन पर कंट्रोल करने वाला है-मास्टर ग्लैण्ड । पिच्यूटरी का संबंध जुड़ा है पिनियल ग्लैण्ड और हाईपोथेलेमस से । सिर का फ्रन्टल लाब सारा नियंत्रण कर रहा है और सारी अभिव्यक्तियां, जो वृत्तियों की हो रही हैं, वह इसके आस-पास हो रही है । यह नियंत्रण की बात वैज्ञानिक स्तर पर आज का प्रमुख चिंतक या विद्यार्थी ही समझ सकता है। अब दूर जाए परोक्ष में, तो परोक्ष बड़ा वादविवाद का विषय है । परोक्ष में जहां साक्षात्कार नहीं होता, प्रत्यक्षीकरण नहीं होता, वहां तर्क और प्रतिपक्ष का चक्र चलता है । पूरा भारतीय दर्शन इस चक्र से भरा पड़ा है । एक ने स्थापना की तो दूसरे ने उसकी उत्थापना की, या दूसरे ने खण्डन किया । यह मंडन-खंडन, स्थापना-उत्थापना, तर्क और प्रतितर्क, वाद और विवाद का पूरा चक्र है । यह एक व्यूह जैसा लगता है। इसका पार पाना भी सामान्य आदमी के लिए कठिन बन जाता है । दर्शन का अर्थ था प्रत्यक्ष देखना, जानना, स्वीकार करना । आज तो दर्शन का अर्थ ही बदल गया । विद्यार्थी को विद्यालयों में और विश्वविद्यालयों में जो दर्शन पढ़ाया जाता है, उसे फिलॉसफी कहते हैं, दर्शन नहीं कहते । यदि दर्शन कहा जाए तो शायद उसके साथ न्याय नहीं होगा, क्योंकि वह तो मात्र बौद्धिक है, अनुमान और तर्क की परिकल्पना जैसा । दर्शन वाली बात तो छूट गई। प्राचीन काल में ऋषि को द्रष्टा माना जाता था। 'दर्शनात् ऋषि:'ऋषि वह होता है, जो देखता है । अनुमान करने वाला ऋषि नहीं होता । तर्क करने वाला ऋषि नहीं होता । साक्षात्कार करने वाला ऋषि होता है । उपनिषद् में बहुत सुन्दर कहा गया है कि जब ऋषि समाप्त होने लगे, तब कहा कि ऋषि तो जा रहे हैं, प्रस्थान कर रहे हैं, पीछे से काम कैसे चलेगा? वे नहीं रहेंगे तो काम कैसे चलेगा ? तब ऋषि के स्थान पर तर्क की स्थापना की और कहा गया कि इस तर्क से तुम्हारा काम चलेगा। यह स्थानापन्न है, मूल नहीं । मूल व्यक्ति से जो काम होता है, वह स्थानापन्न से नहीं होता। आज दर्शन का सारा अवधारण ही बदल गया । हम मात्र बुद्धि के व्यायाम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org


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