Book Title: Ekla Chalo Re
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Tulsi Adhyatma Nidam Prakashan

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Page 311
________________ एकला चलो रे व्याधियों को मिटाने का प्रयत्न होता है। किन्तु हम इस बात को भी जानते हैं कि जितना प्रयास. शारीरिक बीमारियों को मिटाने के लिए हो रहा है, उतनी ही शायद बीमारियां बढ़ती जा रही हैं। इसका कारण बहुत साफ है कि दवा दी जा रही है शारीरिक बीमारी की और दवा दी जा रही है जर्म या कीटाणु के आधार पर, किन्तु यथार्थ में बीमारी भीतर से आ रही है । केवल बाहर की चिकित्सा हो रही है। उसका जो मूल कारण है, उसकी चिकित्सा नहीं हो रही है इसलिए एक बीमारी मिटती नहीं है, दूसरी बीमारी पैदा हो जाती है। ___ हम व्याधि पर अटकें नहीं। शारीरिक तनाव पर अटके नहीं । शारीरिक तनाव होता है तो उसके निकालने के बहुत सीधे उपाय हैं । किन्तु तनाव केवल शरीर में ही नहीं है । तनाव मन में भी हो जाता है, मन से परे भावना में भी हो जाता है। तनाव का मूल कारण है भावना । हम चाहते हैं व्यवहार अच्छा हो। एक विद्यार्थी से सब कोई चाहते हैं कि उसका व्यवहार अच्छा हो । अनुशासन हो, चरित्र हो । सब चाहते हैं, सब अध्यापक भी चाहते हैं, परिवार वाले भी चाहते हैं और दूसरे बड़े-बूढ़े सब लोग चाहते हैं। चाहना एक बात है और होना बिलकुल दूसरी बात है । चाहते हैं पर उस चाह के पीछे यथार्थ कितना है, वास्तविकता कितनी है, इस बात पर हम ध्यान नहीं देते। किन्तु मनुष्य का व्यवहार और आचरण दो स्थितियों से प्रभावित होता है । एक है निमित्त, परिस्थितियां, बाहरी वातावरण और उससे भी ज्यादा प्रभावित करते हैं हमारे आन्तरिक कारण । हमारे भीतर कुछ ऐसे कारण हैं और उनमें मुख्य कारण हैं-ग्लैण्ड के स्राव । शरीरशास्त्र की भाषा में जो एण्डोक्राइन ग्लैण्ड्स सिस्टम है, उनके स्राव हमारे व्यवहार और आचरण को ज्यादा प्रभावित करते हैं। सहज ही एक दार्शनिक के मन में, एक विचारक के मन में प्रश्न उपस्थित होता है कि हमारे आचरण का कंट्रोल कौन कर रहा है ? तो शायद ईश्वर की भाषा में सोचने वाले इसका उत्तर दे सकते हैं कि इसका नियंत्रण ईश्वर कर रहा है। कर्मशास्त्र की भाषा में सोचने वाले इसका उत्तर दे सकते हैं कि पुराने किए हुए कर्म कंट्रोल कर रहे हैं । ये दोनों बहुत परोक्ष की बातें हैं । परोक्ष की बात में हमारा विश्वास कम बनता है । तो कोई प्रत्यक्ष कारण ढूंढ़ना चाहिए। प्रत्यक्ष कारण खोजें तो हमारे शरीर में ही वह कारण खोजना होगा । और शरीर में उसका कारण है पिच्यूटरी और एड्रीनल ग्लैण्ड । सबसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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