Book Title: Ekla Chalo Re
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Tulsi Adhyatma Nidam Prakashan

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Page 284
________________ ध्यान : जीवन की पद्धति २७३ हैं और असंग्रह में विश्वास करने वाले भी हैं। सभी प्रकार के लोग हैं। किसी भी प्रकार की यहां कमी नहीं है । एक आदमी, हजारों से संपर्क । प्रत्येक संपर्क से मस्तिष्क प्रभावित होता है । हिंसा के पक्ष में तर्क सुनते ही आदमी का विचार हिंसा का समर्थन करने लग जाता है और अहिंसा के पक्ष में तर्क सुनकर आदमी अहिंसा का समर्थन करने लग जाता है । आदमी आस्तिकता के तर्क सुनकर आस्तिक और नास्ति - कता के तर्क सुनकर नास्तिक बन जाता है । बड़ी विकट समस्या है | इस दुनिया में एक ही विचार और एक ही आचार नहीं है । एक ही रुचि और एक ही आकर्षण नहीं है । नाना विचार, नाना आचार, नाना रुचियां और नाना आकर्षण हैं यहां । ऐसी दुनिया में एक आदमी का जीना और उन सब लोगों के बीच रहकर जीना, कितना कठिन होता है, वही जानता है जो उसे भोगता है । जो नहीं भोगता, वह क्या जाने ? परन्तु यह तो प्रत्येक व्यक्ति भोगता ही । to व्यक्ति ध्यान की स्थिति से गुजरता है तब उसमें शक्ति जागती है, प्राणशक्ति का विकास होता है और यह शक्ति उसे स्थिर बनाती है । हजारों प्रभाव आते हैं, पर वह डोलता नहीं । बड़े-बड़े तूफान और बवंडरों से पर्वत नहीं डोलता, वृक्ष डोल जाते हैं, धराशायी हो जाते हैं । पर्वत में इतनी स्थिरता आ गई कि वह डोलता नहीं । पानी की तीन अवस्थाएं होती हैं—तरल, बर्फ और भाप । तीनों एक ही हैं । इसमें कोई मौलिक अन्तर नहीं है । जब पानी गाढ़ा होता है, तब बर्फ बन जाता है और वही पानी जब एक बिन्दु पर पहुंचकर उबलता है, तब भाप बन जाता है । पानी तरल होता है, बर्फ गाढ़ा होता है और भाप उड़नशील होती है । वह आकाश में उड़ जाती है, पता नहीं चलता । पानी से बर्फ का मूल्य ज्यादा है । एक अध्यापक ने विद्यार्थी से पूछा- पानी और बर्फ में क्या अन्तर है ? विद्यार्थी ने उत्तर दिया - पानी बिना पैसे मिलता है और बर्फ के पैसे लगते हैं - यह अन्तर है । पानी से बर्फ का मूल्य ज्यादा है और बर्फ से भाप का मूल्य ज्यादा है । चित्त की भी तीन अवस्थाएं हैं। एक है पानी की तरह तरल, दूसरी है बर्फ की तरह गाढ़ी और तीसरी है भाप की तरह उड़नशील । जब चित्त पानी की तरह तरल होता है, तब उसमें सब कुछ मिल सकता है, मिश्रण हो सकता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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