Book Title: Ekla Chalo Re
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Tulsi Adhyatma Nidam Prakashan

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Page 307
________________ २९६ एकला चलो रे करता है। एलोपैथी में जितनी एंटीबायोटिक्स हैं, हरा रंग सबसे अच्छा एंटोबायोटिक्स है । उस में बहुत विषनाशक शक्ति है। कुछ लोग प्रयोग तो करते हैं । आंख थोड़ी-सी दुःखती है और हरे रंग की पट्टी लग जाती है। जानकार लोग सांप काटे पर भी हरे रंग का प्रयोग करते हैं, हरे रंग की 'पट्टी लगा देते हैं । हरे रंग का कपड़ा पहन लेते हैं। हरा रंग विष-नाशक होता है । स्वास्थ्य बिगड़ता है, शरीर में जमा होने वाले विषों के कारण । हम लोग विष तो बहुत जमा करते ही हैं, किन्तु उसे निकालना नहीं जानते। आप कोई भी चीज चुन लें खाने के लिए-चाहे दूध या और कुछ । आप तो यही जानते हैं कि दूध अमृत है, पर क्या दूध के साथ-साथ विष नहीं जाता ? दूध में भी विष होता है । लोग कहते हैं कि पालक का साग बहुत गुणकारी होता है, पर उसमें भी तो बहुत विष होता है। कोई भी भोजन ऐसा नहीं है कि जिसमें जहर न हो। हर वस्तु में जहर होता है। हर वस्तु मात्रा-भेद से हमारे शरीर में विष पैदा करती है। प्राकृतिक चिकित्सा का तो यह सिद्धांत है कि बीमारी का मतलब है शरीर में विजातीय तत्त्वों का इकट्ठा होना, जहर का इकट्ठा होना । उनके पास एक ही दवा है-एनीमा लो, मिट्टी की पट्टी लगाओ। शरीर में जो विष जमा है, उसे निकाल दो, अपने आप ही ठीक हो जाओगे । बस स्वस्थ होने का यही एक सूत्र है। 'नमस्कार महामंत्र' विष को नाश करने वाला है। ‘णमो उवज्झायाणं' का आनन्द केन्द्र पर हरे रंग के साथ ध्यान किया जाता है तो हमारे शरीर में और मन में जमे हुए विजातीय तत्त्व और विषैले परमाणुओं का उत्सर्जन होता है। वे बाहर निकल जाते हैं। ___णमो लोए सव्वसाहूणं' यह बहुत शक्तिशाली मंत्र है। इसका रंग है नीला । नीला रंग बहुत महत्त्वपूर्ण होता है। नीला रंग अनेक प्रकार की बीमारियां और मानसिक उलझनों के लिए शायद सबसे शक्तिशाली दवा है। गर्मी बढ़ गई, रक्तचाप बढ़ गया, रंग-चिकित्सा चलती है। किसी रंग चिकित्सा के पास जाएं और पूछे कि रक्तचाप बहुत बढ़ गया तो सीधा सुझाव देगा कि नीले रंग की बोतल में पानी भरो, सूरज की धूप में रखो, चार-पांच घंटे बाद उस पानी की एक औंस मात्रा ले लो, रक्तचाप कम हो जाएगा, गर्मी कम हो जाएगी, यह बीमारी कम हो जाएगी। जैन आचार्यों ने स्वास्थ्य के लिए दो मंत्रों का चुनाव किया-'णमो लोए सव्वसाहूणं' और उसका दूसरा रूप किया-'सव्वसाहूणं'। इन दोनों का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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