Book Title: Ekla Chalo Re
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Tulsi Adhyatma Nidam Prakashan

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Page 296
________________ ध्यान : कठित या सरल २८५ शोध हो जाने के पश्चात् धर्म अनुपयोगी हो गया, पुराना बन गया। वह अतीत की स्मृतिमात्र बन गया। इस इक्कीसवीं सदी में उसकी कोई उप. योगिता नहीं रही यह कथन भ्रमपूर्ण है। क्या हम शाश्वत तत्त्व को अनुपयोगी सिद्ध कर सकेंगे ? जो शाश्वत है, त्रैकालिक है, वह अनुपयोगी कैसे हो सकता है ? धर्म यदि सचाई है, वैकालिक है तो कभी अनुपयोगी नहीं हो सकता। आज के युग में धर्म की और अधिक उपयोगिता है। इसका कारण बहुत स्पष्ट है । भौतिक शरीर के लिए सारी सुविधाएं जुटा लेने के बाद भी हमारा मानव शरीर और भावनात्मक शरीर आज ज्यादा व्यथित है। हम तीन आयामों में जीते हैं १. भौतिक शरीर का आयाम, २. मन का आयाम, ३. भावना का आयाम । भौतिक शरीर स्थूल है। मन उससे सूक्ष्म है और भावना उससे भी सूक्ष्म है। भावना मन को प्रभावित करती है और मन शरीर को प्रभावित करता है। ये तीनो जुड़े हुए हैं। यदि हम केवल इस भौतिक शरीर को ही पकड़ते हैं, समूचा ध्यान इसी पर केन्द्रित करते हैं तो समस्या का समाधान नहीं होता । यही कारण है कि आज का आदमी अधिक पागल होता जा रहा है, मानसिक विकृतियों से अधिक ग्रस्त होता जा रहा है। आदमी ने अपनी सारी शक्ति इस स्थूल शरीर पर केन्द्रित कर रखी है । इस शरीर को आराम मिले, इसे सुख-सुविधा मिले, यही उसका लक्ष्य बन गया है। किन्तु सचाई यह है कि जब तक आदमी मन पर ध्यान नहीं देता, भावना पर ध्यान नहीं देता, वह समस्या से कभी मुक्त नहीं हो सकता। आदमी समस्या को सुलझाता ही कहां है ? वह एक समस्या को इस जेब से उस जेब में डाल देता है और अनूभव करता है कि वह उस समस्या से मुक्त हो गया। यह कैसी मुक्ति ? एक आदमी बस में यात्रा करता था। वह बस में केले खाता और छिलके को खिड़की से सड़क पर फेंक देता। एक दिन एक भाई ने कहा-भाई ! सड़क पर छिलके डालना उचित नहीं है। दूसरे फिसलकर गिर पड़ते हैं। छिलकों को एकान्त में डालना चाहिए । उसने कहा-अच्छी बात है। दूसरे दिन की बात है। पूर्व दिन वाले दोनों यात्री एक ही बस में बैठे हुए थे। एक ने केले छीले, खाए और छिलके डाल दिये। सड़क पर नहीं, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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