Book Title: Ekla Chalo Re
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Tulsi Adhyatma Nidam Prakashan

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Page 300
________________ २८६ नमस्कार महामंत्र प्रयोग और सिद्धि बीमारियां होती हैं | स्वास्थ्य भी शरीर का नहीं, ज्यादा मन का होता है । आज कायिक बीमारियां कम हैं, मनोकायिक बीमारियां ज्यादा हैं । वे ही ज्यादा परेशान करती हैं । हार्ट ट्रबल बहुत है । कैंसर की बीमारी बहुत है । अल्सर बहुत है । ये सारी बीमारियां और इस प्रकार की अन्य भयंकर बीमा - रियां मनोकायिक बीमारियां हैं । हमारे सामने दो बातें आती हैं- शरीर का स्वास्थ्य और मन का स्वास्थ्य | शरीर का बल और मन का बल । इन दोनों में भी एक सम्बन्ध है । हम सोचें वास्तविक स्वास्थ्य क्या है ? एक लेखक ने कविता लिखी और संपादक के पास प्रकाशनार्थ भेज दी । उसमें लिखा- ' संपादक महोदय ! आपके पत्र में आजकल बहुत सारी कवि - ताएं छपती हैं । मैं पढ़ता हूं और मेरी धारणा बनी है कि उन कविताओं में सिर-पैर नहीं होते । मैं जो आपको कविता भेज रहा हूं, उसमें सिर भी है, पैर भी हैं । आप पढ़कर स्वयं जान लेंगे ।' कुछ दिनों बाद संपादक ने कविता को लौटाते हुए लिखा- 'तुम्हारी कविता में सिर और पैर मिले, पर प्राण: नहीं मिला, इसलिए लौटा रहा हूं ।' कोरा सिर और पैर काम नहीं देता, जब प्राण नहीं होता । हमारी सारी: शक्ति का, हमारे स्वास्थ्य का आधार प्राणशक्ति होती है । प्राण नहीं होता तो सिर पड़ा रहे पैर पड़े रहें, सारे शरीर का ढांचा पड़ा रहे तो कुछ नहीं होता । प्राण चला गया तो सब कुछ चला गया । प्राण है तो सब कुछ है । हमारी स्वास्थ्य की धारणा बदलनी चाहिए। शरीर का स्थूल होना, मांसल होना, यह कोई स्वास्थ्य की अवधारणा नहीं है । स्वास्थ्य का अर्थ होता है। प्राणशक्ति की प्रचुरता । जिस व्यक्ति में प्राणशक्ति की प्रचुरता होती है, वह स्वस्थ होता है और जिसकी प्राणशक्ति दुर्बल बन जाती है, वह अस्वस्थ बन जाता है । चिकित्साशास्त्रीय दृष्टि से हर व्यक्ति के चारों ओर बीमारी के कीटाणु, नाना प्रकार के वायरस परिक्रमा करते रहते हैं, शरीर के भीतर प्रवेश करते रहते हैं । किन्तु तब तक वे आक्रमण नहीं कर सकते जब तक हमारी प्रतिरोधात्मक शक्ति अच्छी होती है। जब तक शरीर की प्रतिरोधात्मक शक्ति अच्छी होती है तब तक उनका वश नहीं चलता । जब शरीर की प्रति-रोधात्मक शक्ति कम हो जाती है, लाल अणुओं के साथ श्वेत अणु कम हो जाते हैं और उनके लड़ने की क्षमता कम होती है तो वे कीटाणु और जीवाणु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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