Book Title: Ekla Chalo Re
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Tulsi Adhyatma Nidam Prakashan

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Page 274
________________ प्रश्न तीन : समाधान एक २६३ चमड़ी में कितने तत्त्व भरे पड़े हैं, कौन जानता है ? चमड़ी की करोड़ोंकरोड़ों कोशिकाएं कहां दिखाई देती हैं ? प्रत्येक कोशिका क्या-क्या करती है, कहां दिखायी देता है ? स्थूल जगत् की जानकारी भी बहुत कम है। कहा जा सकता है कि एक प्रतिशत के करोड़वें भाग की भी जानकारी नहीं है । जब स्थूल जगत् की यह बात है तो फिर सूक्ष्म जगत् की बात ही क्या है ? यह स्वाभाविक है, आदमी का झुकाव उसी की ओर होगा, जिसको आदमी जानता है । जिसे वह नहीं जानता, उसकी ओर वह कभी नहीं झुकेगा । झुकाव का कारण ही नहीं रहेगा । जिससे आदमी परिचित नहीं है, उसके प्रति झुकाव या अझुकाव की बात ही पैदा नहीं होती । जिसे मैं नहीं जानता, वह न मेरा मित्र बन सकता है और न शत्रु बन सकता है । मित्र भी वही बनता है, जिसे मैं जानता हूं | और शत्रु भी वही बनता है, जिसे मैं जानता हूं । जिसे नहीं जानता, वह कुछ भी नहीं बनता । बात है जानने की । यह बात सच नहीं लगती कि मनुष्य का झुकाव बाह्य जगत् की ओर है । उसका झुकाव बाह्य जगत् की ओर अधिक नहीं है । उसका बाह्य जगत् की ओर झुकाव है, केवल प्रतिबिम्ब का झुकाव, केवल प्रतिक्रिया का झुकाव । यथार्थ का झुकाव नहीं है । एक आदमी कहता है - 'सारी संपत्ति भलें ही चली जाए, मेरी मूंछें नीची नहीं होंगी ।' किसकी ओर है झुकाव आदमी का ? बाह्य जगत् की ओर झुकाव है या अन्तर् जगत् की ओर ? यदि पदार्थ जगत् की ओर झुकाव होता तो वह कहता - 'सम्मान रहे या जाए, प्रतिष्ठा बनी रहे या मिट जाए, मूंछ ऊंची रहे या नीची, मेरा धन ऐश्वर्य बचना चाहिए ।' इतिहास में ऐसे उदाहरण मिलते हैं, जिनसे यह प्रतीत होता है कि कुछेक व्यक्ति ऐसे हुए हैं, जो अपनी आन पर मिटे । उन्होंने सारे राज्य को ठुकरा दिया, खो दिया । वे अपनी आन पर मर मिटे । वे मानते थे, सब कुछ चला जाए, ऐश्वर्य चला जाए, परिवार चला जाए, इज्जत और सम्मान बना रहे । यह भीतरी झुकाव की बात है । अहंकार बाह्य जगत् का तत्त्व नहीं है । यह भीतरी संसार का तत्त्व है । इसीलिए भगवान् महावीर ने कषाय को 'आध्यात्मिक' कहा है । ये कषाय आत्मा के भीतर होते हैं । बाहर में इनका अस्तित्व नहीं है । क्रोध भीतर से आता है । क्रोध से आविष्ट व्यक्ति बड़ी से बड़ी नौकरी को ठुकरा देता है, वर्षों से चले आ रहे सम्बन्ध को तिनके की भांति तोड़ डालता है । यदि आदमी बाह्य जगत् की ओर ही झुकाव रखता है तो ऐसा नहीं करता । क्रोध, अहंकार और लालच के कारण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org


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