Book Title: Ekla Chalo Re
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Tulsi Adhyatma Nidam Prakashan

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Page 276
________________ प्रश्न तीन ! समाधान एक २६५ भोजन को भोजन मानकर खाया जाता, पदार्थ मानकर खाया जाता तो अवश्य ही याद रहता। किन्तु मूछी से खाया, लालच के नशे में खाया, लोलुपता की ज्वाला में जलते हुए खाया तो आदमी को कुछ भी पता नहीं चलेगा। पता चलेगा लोलुपता को, लालच को और मूळ को। ___ वास्तव में आदमी बाह्य जगत् से प्रभावित नहीं है । यह केवल एक आरोपण है कि आदमी बाह्य जगत् से प्रभावित है। सचाई यह है कि आदमी अन्तर् जगत् से प्रभावित है और उसका समूचा जीवन अन्तर् जगत् के द्वारा संचालित हो रहा है। दूसरा प्रश्न है-प्रगति का । प्रगति अतीत में नहीं हुई, ऐसा नहीं कहा जा सकता है। आज हमारे संसार से अधिक प्रगतिशील संसार अनेक हैं । इस सौरमण्डल में कितने संसार भरे पड़े हैं जो उन्नतशील हैं । जैसे-जैसे अतीत को खोजा जा रहा है, सचाइयां उभरकर सामने आ रही हैं । पिरामिड की खोज ने आश्चर्य में डाल दिया। दिल्ली की कुतुबमीनार और लौह-स्तंभ अनेक वैज्ञानिकों के लिए आश्चर्य का विषय बने हुए हैं। सैकड़ों वर्ष पहले ऐसी वस्तुएं कैसी बनायी गई । सैकड़ों वर्षों से आतप और वर्षा का आघात सहते हुए भी उस लौह-स्तंभ पर जंग क्यों नहीं जमा ? इंजीनियर स्वयं आश्चर्यचकित हैं । वे इसकी तकनीक को खोजना चाहते हैं। और भी अनेक तथ्य सामने आ रहे हैं । हवाई-पट्टियां सामने आ रही हैं। अनेक प्रकार के यंत्र और शस्त्र मिल रहे हैं। जो प्राचीन जीवाश्म मिल रहे हैं, उन्हें देखकर वैज्ञानिक जगत् सचमूच आश्चर्य में है। प्राचीन भारतीय साहित्य में ऐसे प्रक्षेपास्त्रों का वर्णन मिलता है, जिनके समक्ष आज के प्रक्षेपास्त्र नगण्य लगते हैं। उनमें एक है-मदन प्रक्षेपास्त्र । उसका प्रक्षेप होते ही सभी आदमियों में वासनाएं जाग उठती हैं, सब कामग्रस्त हो जाते हैं । एक है--निद्रा प्रक्षेपास्त्र । उसका प्रक्षेष होते ही सब निद्राधीन हो जाते हैं। एक है-माया प्रक्षेप । इसके प्रक्षेप से सब व्यक्ति सम्मोहित हो जाते हैं। इसी प्रकार आग्नेय प्रक्षेपास्त्र, वारुणी प्रक्षेपास्त्र आदि अनेक अस्त्रों का निर्माण अतीत में हुआ था और उनका प्रयोग भी होता रहा है, किन्तु सदा ऐसा होता है कि आदमी अतीत को विस्मृत कर वर्तमान से चिपकता है । इस स्थिति में अतीत की सभ्यता भुला दी जाती है, नष्ट हो जाती है, सारा ज्ञान-विज्ञान समाप्त हो जाता है। केवल शब्द अस्तित्व में रहते हैं। उनका अर्थ विलुप्त हो जाता है। ऐसा सदा होता रहा है, आज भी होगा और आने वाला भविष्य वर्तमान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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