Book Title: Ekla Chalo Re
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Tulsi Adhyatma Nidam Prakashan

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Page 275
________________ २६४ आदमी क्या क्या नहीं छोड़ता, क्या-क्या नहीं ठुकराता । वास्तव में आदमी का झुकाव होता है अपनी वृत्तियों के प्रति । वृत्तियों से घिरा हुआ है आदमी । वृत्तियों की ओर झुका हुआ है आदमी । वृत्तियां बिम्ब हैं | पदार्थ के प्रति होने वाला झुकाव प्रतिबिम्ब है । वृत्तियां क्रिया है और पदार्थ के प्रति होने वाला झुकाव प्रतिक्रिया है । हम प्रतिक्रिया को देखकर मान लेते हैं कि मनुष्य का झुकाव पदार्थ के प्रति है । किन्तु गहरे में उतरकर देखें तो पता चलेगा कि आदमी का झुकाव वृत्तियों की ओर है । जिस प्रकार आदमी वृत्तियों से संचालित होता है, पदार्थ को पकड़ता है, छोड़ता है, वह द्वयं है, पहली बात नहीं है । झुकाव की पहली शर्त हैवृत्तियां । वृत्तियां बाह्य जगत् में नहीं हैं । संस्कार बाह्य जगत् में नहीं हैं । वे सब भीतरी जगत् में हैं। जहां संस्कार प्रबल होता है, वहां पदार्थ गौण हो जाता है, वह बिलकुल बांधा नहीं डालता । हम इस सचाई को समझें कि हम अनजान में ही अन्तर् जगत् को जान रहे हैं, और उससे प्रभावित होकर ही सब कुछ कर रहे हैं । पदार्थ और बाह्य जगत् का हमारा आकर्षण भी आन्तरिक वृत्तियों के कारण है । यदि ये वृत्तियां ढल जाएं, तो पदार्थ कोरा पदार्थ रह जाए । उसके प्रति होने वाला आकर्षण समाप्त हो जाए । यही साधना की प्रक्रिया है । इस प्रक्रिया में पदार्थ कोरा पदार्थ रह जाता। उसके प्रति होने वाला झुकाव समाप्त हो जाता है। भोजन रहता है, पर उसके प्रति होने वाली आसक्ति समाप्त हो जाती है । जब तक साधना का भाव नहीं जागता, आदमी ध्यान में नहीं उतरता, तब तक वह भोजन करता हुआ भी भोजन को नहीं खाता; आसक्ति को खाता है, भोजन की लोलुपता को खाता है । वह नहीं जानता कि भोजन क्या होता है । लोलुपता इतनी महरी होती है कि भोजन सामने आता है और वह सब कुछ भूल जाता है । आसक्ति भोजन को खाती है और आदमी को उस भोजन के स्वाद का भी पता नहीं लगता । स्वाद का सही पता उस व्यक्ति को चलता है, जिसके मन में भोजन का लोभ नहीं होता, आसक्ति नहीं होती । इस स्थिति में ही आदमी जान सकता है कि वह क्या खा रहा है । अनेक व्यक्ति ऐसे होते हैं, जिन्हें याद ही नहीं रहता कि अभी-अभी क्या क्या खाया था । उनको पूछने पर वे कहते हैं- हमें याद नहीं है कि हमने क्या खाया था ? यह कैसे संभव हो सकता है कि खाया और याद नहीं रहा ? मूर्च्छा इतनी सघन होती है कि खाया हुआ याद नहीं रहता । यदि जागरूकता से खाया जाता, Jain Education International एकला चलो रे For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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