Book Title: Ekla Chalo Re
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Tulsi Adhyatma Nidam Prakashan

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Page 265
________________ २५४ एकला चलो रे तपस्या का प्रयोग है किन्तु भयंकर बीमारियां आयंबिल से नष्ट होती हैं। पक्षाघात की बीमारी बहत भयंकर बीमारी होती है, किन्तु आयंबिल के द्वारा ठीक हो जाती। अजीर्ण और अपच की बीमारी इससे ठीक होती है। एक साथ ज्यादा वस्तुएं खाने से बहुत बीमारियां होती हैं और एक अनाज खाने से पाचन-शक्ति को बहुत राहत मिलती है। किसी के सिर पर एक साथ बहुत काम लाद दिया जाये तो वह घबरा जायेगा कि इतने काम करने हैं। और एक-एक काम कराया जाये, बहुत सुविधा से कर लेगा। इस बात को समझ लें कि जहां भीड़ होती है उसे संभालना कठिन होता है । एक को संभालने में कोई कठिनाई नहीं होती। तो, एक वस्तु पेट में जाती है तो पचाने में बहुत सुविधा होती है और अनेक वस्तुएं एक साथ पेट में जाती हैं तो उन्हें पचाने में अधिक शक्ति लगानी पड़ती है। लाडनूं की घटना है। एक भाई आया जो यह बताता था कि कहां कुआं खोदना चाहिए ? कहां पानी निकलेगा? मैंने पूछा-क्या प्रयोग किया था तुमने ? उसने कहा-मेरे गुरु ने मुझे एक प्रयोग बताया कि छह महीने तक एक अनाज खाया जाए और केवल पानी पीया जाये तो भूगर्भ में छिपी वस्तुओं का ज्ञान हो सकता है। मैंने वह प्रयोग किया और मुझमें यह ताकत पैदा हो गई । मैंने कहा-यह तो आयंबिल का प्रयोग है। एक अनाज और पानी चले तो यह शक्ति पैदा हो सकती है। आगमों में आयंबिल के बहुत प्रयोग मिलते हैं। बीमारियों में भी इसके बहुत प्रयोग होते हैं। आयंबिल में नमक का भोजन नहीं होता । यह अति नमक वाली बात बिलकुल गलत है। इसे छोड़ा जाये तो कोई हानि की बात नहीं, प्रत्युत लाभ ही होगा। प्राकृतिक चिकित्सा के लोग इस विषय पर बहुत बल देते हैं कि नमक खाया ही न जाये। ___ क्या नमक का उपयोग न करने की साधना अन्य साधनाओं में सहयोगी बनती है-यह एक प्रश्न है । यह प्रियता और अप्रियता से बचने का पहला प्रयोग है । जब आहार का प्रयोग सध जाता है, तब कपड़ों के प्रति, शरीर के प्रति, आसपास के व्यक्तियों के प्रति भी यह प्रयोग सधने लगता है। व्यक्ति में प्रियता और अप्रियता का भाव घटने लगता है। समता का अभ्यास सधता है। नमक की बात पहले इसलिए ली गई कि आहार सबसे अधिक सनाता है मनुष्य को । आदमी का अधिक समय आहार की चर्चा में बीतता है। जैन साहित्य में यह प्रतिपादित है कि आदमी की चर्चा में चार मुख्य विषय होते Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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