Book Title: Digambar Jain 1923 Varsh 16 Ank 12
Author(s): Mulchand Kisandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 4
________________ दिगंबर जैन | ( २ ) दीवाली में पढने योग्य संक्षिप्त महावीरचरित्र दो आने में हमसे मिल सकती है जो हरएक स्थान परं पढा जाना चाहिये व उसको प्रभावना में बांटना भी चाहिये तथा रात्रिको समा करके महावीरके गुणों का वर्णन होना चाहिये । * * *. हरएक स्थानपर दिवाली के दिन शाम को दीवाली पूजन होता है व नई दीवाली पूजन | बहियों का मुहूर्त होता है, वह कई स्थानोंपर दिखते हुए हमें आनंद होता है, परन्तु साथमें दुःख भी होता है कि हमारे बहुतसे जैनी माई अबतक अपने कारोबार में जैन संगत नहीं लिखते । हमारा यह संवत लिखते रहने से तो हमें स्मरण रहता है कि हमरे अंतिम तीर्थंकर महावीर प्रभुको हुए इतने वर्ष होगये हैं तथा हमारे जैन संवतके प्रचारसे अन्य धर्मोके साथ हमारा गौरव मी बढता है व जो जैनियोंको आधुनिक मानते हैं उनकी मी आंख खुलेगी कि जैनियोंके तो २४ पैगम्बर होगये हैं उनमें २४ को हुए २४९० वर्ष हुए हैं इससे चैनधर्म बहुत प्राचीन धर्म होना चाहिये आदि । इससे हम हरएक जैन माइसे सविनय वार ९ निवेदन करते हैं कि आप अबके कार्तिक सुदी १से अपनी वहियों में, चिट्ठी पत्री में तथा हरएक व्यवहार में वीर संवत २४९० अवश्य किखिये । आपको लिखने में भूल पड़े तो बीर सं० २४५० के साथ विक्रम सं० १९८० भी दिखते रहेंगे तो कोई हानि नहीं है परन्तु जैन संवतका तो अवश्य उपयोग करना चाहिये । अमीत मिथ्यात्वी रुढिपे होता है ऐसा न - होकर पूज्य ब० शीतलप्रसादजी द्वारा सम्पा दित दीपमालिका विधान ( जो एक आना में हमसे मिलता है) से सरस्वतीपूजन होना चाहिये . ब नई बहियोंका मुहूर्त जैन विधिसे ही करना चाहिये | * वीर संवत । हरएक धर्म में बड़े प्रधानपुरुष होगये हैं उनके स्मरणमें उनकी मृत्यु समय से उनके नामका संवत् चाया जाता है और इस प्रकार इसका इश्वीसन, विक्रमका संवत शालीवाहन का शक, पारसीका सन, मुसलमानका सन, याहुदी का सन आदि चलता है परन्तु जैनों का 'संवत प्रचलित नहीं था जो १५-२० बर्षसे कहीं २ चालू हुआ है परन्तु अभी तक सर्वत्र प्रचार नहीं है यह खेदजनक समस्या है। सब संवतों में हमारा संवत पुराना है । हमारा वीर निर्वाण संवत् २४४९ पूर्ण होकर अब १४१० का वर्ष कार्तिक सुदी १ से प्रारंभ होगा । संवत की इतनी संख्या किसी मजहब की नहीं है यह * * * वर्षाते । ‘दिगवर जैन'का १६ वे वर्षका यह अंतिम अंक है और आगामी कार्तिक मास से यह पत्र १६ वर्ष पूर्ण करके १७ वें वर्ष में प्रवेश करेगा | हमसे जितनी बनसकी इतनी साहित्य, समाचारादि द्वारा हमने इस वर्ष में ग्राहकों की सेवा की है व नवीन वर्ष में विशेष सेवा करनेकी उम्मेद है । " दिगर जैन " के १४ वे व १९ वे वर्ष के उपहार ग्रन्थ न हम प्रकट करसके थे न बहुत से

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