Book Title: Digambar Jain 1923 Varsh 16 Ank 12
Author(s): Mulchand Kisandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 16
________________ दिगंबर जैन। (१२) यह तम्बाकू दई मारीको किने उपरानी है। चिजको भ्रमाय देत, मनको लुभ य लेत, गुण को न देखे कछु खाये क्या भलाई है ? दशन विनाश करे मुख में दुर्गव व्हे, ___ उष्णताकी बाधाने रक्तता सुखाई है ।। गर्द के मूत्रवत जामन गायकर,.. कृषीकार वोय पुनि सच ही करित पाई है ॥ धन्य है खवैयनको खाय जो तम्बाकूको, ____समां मांझ दूर होय पुचपुची लगाई है ॥ और देखिये-५० मृधरदासमीने इसका कैसे निषेध किया है ॥दोहा॥ बंदो बीर जिनेश पद, कहों धर्म जगतरे । बरते पंचम काल में, जग जीवन हितकार ।। ताहिन त्यागे धूमप्तों, सारे निज उर जान ॥ देखो चतुर विचारके, तिन सम कौम अयान ॥ ॥ चोपाई (छन्द) है जगमें पुरुषास्थ चार, तिनमें धर्म पदारय सार । माके सधे होय सब सिद्धि, या विन प्रगटे एक न रिद्धि । सो पनि देयारूप विन कहो, करुणा बिन जिन धर्म न लहो । यामें छहों कायकी धत, कईहै कहां दयाकी बात ॥ सो सब सुनो सबे बिरतंत, सुनके त्याग करो मति।। हरित कायकी उत्पत्ति हेय, अग्नि संयोग भूमि गनि लेय ।। अग्नि नीर है याको साज, इन बिन सरे नहीं यह कान । काढत धूम बदनते माम, होय समीर कायकी हानि ॥ इह विध पावर दया न होय, असकी त्रास होय पनि सोय । कुंथु आदि जीव या मांहीं, खेचत स्वांस सबै मर नाहीं ॥ उपजे जीव गुडाखू वीच, हुयी है तहां सनकी मीच । हिंसा होय महा अध संच, ऐसे दया पले नहीं रंच ॥ यही बात जाने सब कोय, जंह हिंसा तहां धरम न होय । बहुरि धरम नाश भयों जहां, सकल पदारथ बिनसे तहां ॥ तातें निंद्य मान यह कर्म, पापमूल खोवे धन धर्म । .

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