Book Title: Digambar Jain 1923 Varsh 16 Ank 12
Author(s): Mulchand Kisandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 21
________________ ( १७ ) दिगंबर जैन । यमां मुंबाई पधारनार छे. आ सघळ खुलाशाओ लई एक डेप्युटेशन यापणा अप्रगण्य नेताओनुं उदेपुर नरेश आगळ लई नवं नोइए ने तेमने घळी हकीकत्थी वाफ करवा जोइये अने अरज करवी जोइयेके Management मां आपणो मत रहे भने हानी सळो विगतनी नोंध कई आगळ उपर कोई पण फेरफार सर्वेनी संपति गर थई न शके. जे थयुं होय ते तो धई गयुं, पण भविष्य का नवीन न बनवा पामे एवो बंदोबस्त तो खाल करवोज जोईए. उद्देश्वर नरेश बापणी व्याजी मांगणी ऊपर ध्यान वाप्या वंगर रहेशेन नहिं. आटलं वाथी म वेष्यनी प्रजा माटे आपणे निर्विधन मार्ग करी शकीशुं. मा कार्यमां कांईपण प्रमाद राखत्रामां आवे तो जहर तेषां कांई अनिश्चित कार्य बनवा चोकस संपत्र छे. आ कार्य तीर्थक्षेत्र कमीटी तरफथी उडी ठेवं जोइये. आशा छे के आ नम्र भरजी जैन बन्धुओना हृदयमां उतः शे अने तेओ आ कार्यमां तो प्रयास करवा तत्पर थशे. अतीप इच्छा एन के जैन समाज हवे वधु झगडाना कारणो नहि उमा करी, जैन कोमनुं श्रेय करशे. एन. एक एक हक नबुद तो जाय छे गये वरसे मंदिरजीनी उरनो नादंड फेरवानी हतो, ते वेम्बओर चढावानी तजवीज करी. एक संघ लगभग हजार माणसनो ते समयपर आवी पुग्यो, भने आ बधी गोठवण थई, पण दिगम्बर जैन समाजना सद्भाग्ये आपणा पूज्य लक श्री देवसागर स्यां हानर होवाथी तेमना प्रतापे से नानुं रक्षण पयुं छे. ते ध्वजा उपर दिगंबर अम्नायनो लेख छे, अने ते भरणा मतप्रमाणे चढावामां आवे छे. भवी रीते अनेक हको नामुद थ. मुख्य दहे (सरनी आसपासनी भमतीमां पण केटलीक प्रतिमानी ओना लेखो घड़ी कढया छे, वेटलाकने श्वेतांबरी लंगोटनुं चिन्ह करवामां पण बाकी नथी राख्युं. देखनगर अत्यार सुधीमां चार पांच समय दर्शन करी भाग्या छे, अने दरेक समय ऊपर कोई नवीनता माकम पडती होवाथी अत्यंत खेद साथे ते जोई केता, पण आ समये बांई पण भा कार्यमा सत्कार्य बनी शके एवं लागावी म लेख बख्यो छे.. लखनार हाल दर्शन करवा गया हता, ते समय त्यां देवसागर नामना एक क्षुल्लक श्री बिरानता हता. वात करतां मालम पहयुं हतुं के तेमनी पासे अस भट्टारकजी पासेस वेटलाक लेख तथा आ दहेसर संबन्धी सघळी माहीति हाल मोज्जुद छे, अने तेपनो इरादो एवो हतो के दि० समान तरफथी कांईपण आ जावतमां लेवा तो मां जे मदद जोइये ते सघली पुरी पाडवा तेओ तैयार रहेशे, तेओ ड्रंक सम बिल्कुल नया ग्रन्थ | विद्यमान वीस तीर्थकर की २० पूजाएँ स्वर्गीय कविवर थानसिंहजी टर्टोक निवासीकृत यह पूना अभी ही बड़े २ टाइलों में चिकने कागज पर छाकर तैयार हुई है । पूना के छेद बड़े ही मनोहर हैं । पृ. १८८ सजिल्द मूल्य सिर्फ १ ) अवश्य मंगा लीजिये । मैनेजर, दिगंबर जैन पुस्तकालय - सूरत

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