Book Title: Digambar Jain 1923 Varsh 16 Ank 12
Author(s): Mulchand Kisandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 27
________________ विना अंगके अंगी कैसे। होता है। आधुनिक विद्वत्तमानने क्या कम काम किया है फिर भी उसका सन्मान वरदेवदास समाजकी भाधुनिक परिस्थिती पर जब हम आदि विद्वानों काता न होकर तिरस्कारयुक्त नजर डालते हैं, तब इस बात का अनुभव स्वतः होने हान क्यों होरहा है। छगता है कि इसका उत्थान कैसे हो । जाति पोच और मंदिर आदिके सामान रुपये, • मानव हृदय जिसमें धर्म प्रेम एवं समान न्नतिके आदिके हडपनेसे मुक्दमे चहरहें हैं तो क्यों ? भावं न हो, उसे पाषाण कहकर हम दूर हो जाते यह आपसमें द्वेषाग्निका कारण क्या ! एवं समान हैं तथा खाली गर्जन मात्रसे अभिप्राय रखकर के सायेका उपयोग से अपने १ पैसेके देनेसे "जात्युन्नतिके बाजे बनाकर हम अपनेको कृतकृत्य दुःख होता है वैसा क्यों नहीं हम करते हैं। हम समझने लगते हैं। लेकिन क्या हम सदेव समा- देखते वहां ५.) हायेसे काम चसकता वहां जके उन्नत्यमिलाषी रहते हैं। र २००) तक खर्च करदिये जाते हैं। समाजमें मैत्री. समानकी दशा कैसी हो रही है, विधवाओंकी , वधवाआको भाष वात्सल्य मात्र क्यों नहीं ? आपसमें विरोध संख्या और विधवा होनेके प्रबल कारण कोन एकको देखका एक क्यों जलते हैं। धर्मसे चिाते. कौन हैं इसका विचार कर कौन कमर कप्त दूर को स्थितिकरण और दोष देखकर उपगूहन कौन करनेको तैयार है। पालते हैं। हम यह अच्छी तरह जान चुके कि हां विवाह धार्मिक होनेसे विधवा विवाह पाप जब हमारा कारण कलाप ही बिगड़ रहा है फिर है ऐसा हम कहते अवश्य हैं । लेकिन विवश हम कैसे अपना व समान जो हम.रे आश्रित है ओंका जीवन जिन कारणोंसे पवित्र बने ऐसे उद्धार कर सकते हैं। अतः यह कहना पड़ता साधन कौन कौन वहांपर हैं । जिस स्थान पर है कि विना अंगोंके क्या अंगी कभी जो कुछ हैं मी वे बहुत ही कम हैं। ... हो सकता है ? धनिक अज्ञ म्हुत कुछ स.मान क्या क्या नहीं सुमतिचन्द्र जैन, उपदेशक महामा। अन्याय कर बैठता है और निर्धन समाज फिर -- मी उनकी तारीफोंका ढेर लगा देती है उनकी नये २ ग्रंथ मगाइये। हो में हां मिला कर कौन नहीं अपनेको धन्य प्राचीन जैन इतिहास प्रथम भाग) समझता, किन्तु क्या गरीब भाई वृद्धका कमी जैन बालबोधक चौथा भाग-इसमें विवाह देखा सुना है। गरीबों के हृष्ट पुष्ट कुंवर ६७ विषय हैं। पृ० ३७२ होनेपर भी मू० सिर्फ क्वरे रह जाते हैं और धनिक विकलांग मी क्यों न १-) है। पाठशाला व स्वाध्यायोपयोगी है। हों ता से १ दिनमें विवाह कर लेते हैं किप्सने आत्मसिद्धि-अंग्रेजी, संस्का, गुजराती ) कब इन बातों (क रणों) पर विचार किया है। जिनेंद्रभजनभंडार ( ७९ मनन ) ।) . अन्याय अत्याचारों का सूत्रपात कहां से शुरू मैनेजर-दि० जैन पुस्तकालय-सरत।

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