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दिगंबर जैन
( १३ )
याद ||
घरे |
यामें कोई न देखे स्वाद, प्रातः होत ही आवे मव्य जीव सामायिक करे, सब जीवन सों समता यह जोरे सत्र याको साज, और सकल विरे घर काम ॥ सेवे याही पुरुष उर अंध, बातें मुखदुर्गंध
उत्तम जीवनको नहीं काम, सिगे हलकहोर उर स्याम ॥
जाको कोई ना आदरे, सो सब बातु यामें परे । या सब पवित्रता जाय, परकी झूठ गहे मन लाय ॥ यास कछु पेट ना भरें, हाथ जर्द मुख- कडुको करे । गिने नया कर रैनि सवार, बुरो व्यसन है लेऊ विचार !! ॥ दोहा ॥ स्वाद नहीं स्वार्थ नहीं, परमारथ नहीं होय । क्यों झटे जग झुक्को, यही अचम्मो मोय ॥ ॥ चोपाई (३) ।
बैठे जहां शोभे नहीं पुरुष वह सहीं । जिहिंसनकी गोट मंझार, काग न शोमा रहे अपार ॥ या नफा नहीं तिल मान, प्रगट होत है से समान । यह विवेक बुद्धि हिरदे घरो, ऐसी मान भूल मत करो ॥ इतनी बिनतीपे हठ गहे, मोह उदय त्याग नहीं वहे । तासों मेरी क्यन साय, लाठी लेय न मारो जाय ॥ ॥ दोहा ॥ सरल चित्त सुन भेद यह, तजे आपतों आप | हठ ग्राही हठ गहि रहे, जिनके पोता पाप ॥ हठी पुरुष प्रति यह वचन, सर्व अकारथ जांहि ।
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ज्यों कपूरको मेलिये, कूकरके मुखमांहि ॥ भूदरदात मनसों कही, यही यथारथ बात । सुहित जान हृदय धरो, क्रोप करो मत भ्रात || सबहीको हित सीख है, जाति भेद नहीं कोय । अमृता जो कोई करे, ताहीको सुख होय ॥ इति ॥
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पाठक ! यदि आप लोग इसको ध्यानपूर्वक पढके मनन करेंगे, तथा मनुष्य मात्रको इसका " धूम्र गनका" हानि लाभ बतलादेंगे तो मैं आशा करता हूं कि भारतवर्ष शीघ्र उन्नतिके शिखर पे जा विराजेगा । अंतमें श्री महावीरस्वामीसे प्रार्थना करता हूं कि. हे भगवान् ! हमारे भारत सपूतों को शीघ्र सुबुद्धि हो ।