Book Title: Digambar Jain 1923 Varsh 16 Ank 12
Author(s): Mulchand Kisandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 14
________________ दिगंबर जैन | 07240K ( १० ) इस बात से साफ जाहिर होता है कि उस मौर जो तम्बाकू पीने की इच्छा उत्पन्न हुई थी, वह दिमाग साफ करने व आनंद पानेके लिये नहीं, किन्तु उस शक्तिको दवानेके लिये जो उस विचारे हुये कामको पूरा करने से उसे रोक रही थी । बालक कम तम्बाकू पीते हैं ? प्रायः तमी जब उनकी निर्दोष बाल्यावस्था समाप्त हो जाती है । 1 यह कैसी बात है। मनुष्य में जब कुछ नीतिमत्ता (ज्ञान) अ श्री है तो वह तम्बाकू पीना छोड़ देता है । और बुरे फेलो में पड़ते ही वही फिर तम्बाकू पीने लगता है । प्रायः सब ही जुभारी तम्बाकू क्यों पीने लगते हैं ? नियमित जीवन बितानेवाली स्त्रिये तम्बाकू क्यों नहीं पीती ? क्यों बेश्यायें और पागल सम्राळू पीते हैं ? आदत तो है ही, किन्तु इसका असली कारण दिवेक बुद्धि मारने की इच्छा ही है । इसी उद्देशसे यह पीयी जाती है और पीनेपर उद्देश तुरन्त पूर्ण हो भी जाता है । प्रायः प्रत्येक तम्बाकू पीनेवाले मनुष्य की हालत देखकर आप मालूम कर सक्ते हैं कि तम्बाकू विवे- बुद्धिको कहां तक दबा सका है | मनुष्य जबतक तम्बाकू नहीं पीता तबतक तो वह स्वयं भी समान आवश्यक नियमोंका पालन करता है । और चाहता है कि दू: रे मी I वैसा ही करें । परन्तु जत्र वह तम्बाकू पीने लगता है तब उन नियमों को भूलकर उनके विरुद्ध काम करने लगता है । साधारण लिखे पढ़ लोग भी तम्बाकू पीस बुरा । त्याज्य और अपने आनंदके लिये तम्बाकू पीकर दूसरेके स्वा स्थ आराम और शान्तिमें विघ्न उत्पन्न करना मनुष्यत्वके विरुद्ध समझते हैं । आजकल भारतवर्ष में तम्बाकू, बीडी, एवं सिगरेट का प्रचार बहुत जोरशोर से है । और दिन प्रतिदिन इनके प्रचारार्थ नये नये कारखाने खुलते दिखाई दे रहे हैं । और हमारे मारतवासी भी इनको अपनाने में कुछ कसर नहीं रखते । या वह समय नहीं रहा है कि हम इन मादक पदार्थों द्वारा हमारी विवेक बुद्धिको नष्टकर अपने मनुष्यत्वको खोवें । तथा अपने अमू द्रव्यको पानीकी तरह बहा देवें । परन्च हमको वह काम करना है कि जिस कामको महात्मा गांधीने पूरा करनेका प्रण किया है । प्यारे भारत सपूतो ! कुछ समय के लिये अपने मौन, शौक, एवं आरामको भूल जाओ, और थोड़े समय के लिये महात्माजीके आदेशानुसार अपने सबै गृह कार्य छोड़ देशसेवा में संन होजाओ । यदि आपको किसी तरह की तकलीफ एवं दुःख हो तो उसको सहनशीलता से सहो । तथा कुछ समय के लिये महात्मा गांधीका साथ दे डालो | आनहीसे भाप लोग धूम्रगन करना छोडदें । और इसमें जो क्रप खर्च होता है उसे देशसेवामें लगाना शुरू करदें, और प्रण कर कि आजसे हम धूम्रगन कभी नहीं करेंगे । इसी से देशोन्नति होने की आशा की जा सक्ती है । देखिये, कवि रूपचंदमीने अपनी सुन्दर कविता में इसका जितना निषेध कि

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