Book Title: Digambar Jain 1923 Varsh 16 Ank 10 Author(s): Mulchand Kisandas Kapadia Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia View full book textPage 6
________________ ४) ___दिगंबर जैन । सहायतासे ही करीब २०-२२ वर्षसे काम चल पुत्र श्रीकुमार था। आयु ६वर्ष व सांगली रहा है । श्री शिखरजी, अंतरीक्षनी, मक्तीनी जैन बोर्डिगमें ५ वें दर्ज में पढ़ता था । यह आदि तीर्थों की रक्षाके झगड़ोंमें आन तक जो कुमार अकस्मात् ज्वरसे पीड़ित होगया व जब कार्य इस तीर्थक्षेत्र कमेटीने कर दिखाया है इस कुमारने जान लिया कि मेरी मृत्यु निश्चित वह अतीव प्रशंसनीय है । परन्तु यह कार्य है तब इसने पं. रामचंद्र द द के उपदेशसे समाचालू होने से रुपयोंकी नित्य आवश्यकता रहती धिमरणकी विधि धारण की व शरीरके सब है इसलिये ४-५ वर्ष हुए इस कमेटीने ऐसा वस्त्रोंका भी त्याग कर दिया और णमोकार उचित व सुलभ प्रस्ताव किया है कि प्रतिवर्ष मंत्रका जप करने लगा | द नके लिये उसके हरएक दि जैन गृहवाले सिर्फ एकर पिताने आकर १०० लाकर रखे उसीको देखरुपया तीर्थरक्षा फंडमें देवें परन्तु इस कर कुमार चूप रह गया व बादमें पितासे कहाप्रस्तावकी अमली कार्रवाई बहुत ही कम होती मैं तो मरनेवाला हूं। क्या मेरी इच्छा पूर्ण है । गत वर्ष इस फंडमें बहुत ही कम आय करेंगे ? पिताने कहा-ओ तेरी इच्छा हो सो हुई थी यह ठीक नहीं है। वर्षभरमें सारे कह । कुमारने कहा- मेरे पंछे धर्मोन्नति के लिये कुटुम्बके पीछे तीर्थरक्षाके लिये केवल एक रुपया. २००००) निकालना चाहिये । पिताने तुर्त देना कुछ भी कठिन नहीं है इसलिये इन रुपयों स्वीकार किया ! तब पासवाले लोगोंने कहा क्या की उगाई दशलाक्षणी पर्व में करके रुपयोंकी रकम इस रकमसे नया मंदिर बंधाया नायगा तब उस तीर्थक्षेत्र कमेटीको भेज देनी चाहिये । हरएक धर्मप्रेमी कुमारने अपने पिताको बुलाकर कहाशहरमें एक २ भई स्वयंसेवक होकर यह पितानी, इस रकमको इस प्रकार खर्च करनाकार्य करेंगे तो सहजमें यह कार्य हो सकेगा। ५०००) जैन बोर्डिगमें व १५०००) से जैन कमसे कम अनंत चतुर्दशीके दिन ही उन स्वयं.. धर्मके ग्रन्थ प्रसिद्ध करो व जैन विद्यार्थियोंको सेवकको घर २ जाकर या मंदिरमें भाये हरसे छात्रवृत्ति देना जिससे जैनधर्मकी उन्नति हो। . तीर्थरक्षा फंडका रुपया इकट्ठा कर लेना न किसीने आग्रह किया कि इनमें से ५०००) तो ठीक होगा। श्री सम्मेदशिखरजी क्षेत्र के लिये द न कर । तब * * अपनी इच्छा न होते हुए भी कुमारने १५०००) अभी दक्षिण प्रान्तमें जो एक बाल मरण व मेंसे ५०००) शिखर नीके लिये स्वीकार किये व स्तुत्य दान हुमा है वह यह पुण्यात्मा जीव ता. ४-८-१३की रात्रिको बाल-मरणमें चिरकाल तक याद रहेगा। ११॥ बजे इस संसारसे चल बप्ता । यह मृत्यु स्तुत्य दान। इस मरण व दानकी कथा व दान कितना अनुकरणीय हुआ है उसको इस प्रकार है-सांगली हमारे पाठक अच्छी तरह से जान नायगे व समय (बेलगाम) निवासी एक प्रसिद्ध धनिक व्यापारी आनेपर इसका ही अनुकरण करेंगे ऐसी हमारी सेठ सावंतप्पा भाऊ भारवाडे हैं। उनके एक ही भावना है।Page Navigation
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