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- दिगंबर जैन ।
(२४) जीवनको नष्ट कर रहीं हैं वे उत्साहसे खुशी २. सम्पाटकके लक्षण। श्राविकाश्रयों में जांयगी और आकर माने २
पाठको ! जकल सामा' क तथा राननैतिक ग्रामों में पाठशालाएं खोल धर्मका प्रचार करेंगी,
' क्षेत्रमें नित्य नूतन समाचा त्रि निकल रहे हैं भाने आत्माका उद्धार करेंगी, वर्तमानकी तरह
.यह समाज तथा देशकी उन्नतिके शुभ चिन्ह दिखावे में पर्थ जीवन नष्ट नहीं करेंगी । सिंगर,
ए हैं। जबसे गांपीकी प्रबल मांधी चली है तमीसे विगार करने को हेय समझेंगी । और शुद्ध खद्दर लोगों में समाचारपत्रोंके देखनेकी रुचि पदा हा पहनकर ग्राम २ में प्रचार करेंगी।
गई है यह अच्छी बात है क्योंकि हमाचारपत्र महिलाओ ! नतमानमें से पुरुषसमान मुश्किल ही जनतामें जागृति करनेके एक मात्र साधन ही आपका हाथ बटानेको अगाडी आएगा क्योंकि हैं। परन्तु समाचारपत्रों को योग्य रीत्या चलावह पिहीके कारण (क्षमाकीजिए) आने कत्रेयको नेके लिये अनुभवी-गम्मीर एवं विचारशील मुझे हुए हैं-अपने जैनत्यको विसारे हुए हैं। सम्पादकों का होना आवश्यक है । इसलिए विदुषी महिलाओ ! वारशासनका दिव्य दैनिक व साप्ताहिक पत्रों में जो सम्पादकीय प्रकाश संसारमें प्रगट करनेके लिये जिससे कि मुख्य लेख तथा मासिकपत्रों में नो सम्पादकीय संसारके दुख बन्धन कट मांय आपको खु। एक नोट लिखा है उस प्रतिष्ठित सज्जन व्यक्तिको ऐसा संघ (डे यूटेशन) तैयार करना होगा निप्तके समादक कहते हैं । साधारण जनता ख्याल अंग उदासीन पर आत्मज्ञानासीन विविध लोकिक है कि सम्पादक महोदय प्रातःकाल से सायंकाल माषाओं और विचारों से मिज्ञ महिलाऐं हों नो पर्यत लेखादि लिख में ही निमग्न रहते हैं, भआपके ग्रामों २ में भ्रमण कर इस दिखावटके उडेको बत करने की फर पर नहीं मिती अज्ञानान्धकारको मेट कर मोक्षमार्गका रू। दशा- तथा दैनिक समाचारपत्रोंके सम्पादक को तो सकें। और क्रमशः संसारको पद्न वा इ की हानि । ख.नेशीने तकका भी समय नहीं मिलता, परन्तु जतला सके । मानके श्राविकाश्रम यदि इस यथार्थ में बात ऐसी नहीं है। सुयोग्य संपादक गण कामके लिए अपने २ आश्रम से दो दो निःस्वार्थ
सम्मादनका कार्य करते हुये देश तथा समान की सेविकाएं तैयार करसके और समानमें प्रकार सेवा कर सक्ते हैं और करते हैं तथा अन्य कराते रहसके तो ही वीरशासनका उद्धार होस- कायों के लिये मी उन्हों के पास पर्याप्त समय केगा। ध्यान रहे कि:-
. रहता है। युरोप देशमें लंडन शहरसे ही सैकड़ों "विद्या हमारी भी तरतक काममें कुछ आयेगी। प्रसिद्ध दैनिकपत्र निकलते हैं परन्तु उन पत्र जबतक नारियों को सुशिक्षा दी न जायगी ॥” सम्पादकों को एक कालम तो क्या एक पंक्ति
एम् मातु। मी अपने समाचारपत्रों के लिये नहीं लिखनी महिलाहितैषी-कामताप्रसाद जैन। पड़ती परन्तु तब भी पत्र नियमित रूपसे चलते
हैं। अनेक समाचारपत्रों के सम्मादक अपने कार्या